नई दिल्ली. जरूरी चारा प्रबन्धन के लिए किसान को अपने सभी चारे के सोर्स को अपने खेत पर लगा कर उससे अधिक से अधिक चारा प्राप्त करके अपनी आवश्यकता की पूर्ति के साथ ही अधिक मात्रा में प्राप्त चारे का भंडारण उचित प्रकार से करना चाहिए. चारे के कई सोर्स हैं. फसलें, घास (एक वर्षीय व बहुवर्षीय), झाडियां, पेड़ आदि. वहीं सूखा चारा आमतौर पर किसान दाने वाली फसलों से दाना निकालने के बाद बचे भूसे से हासिल करते हैं. हरा चारा उत्पादन करने के लिए वर्ष भर हरा चारा उत्पादन देने वाली फसलों को फसल चक्र में शामिल करना जरूरी होता है.
राजस्थान में हरे चारे के लिए मुख्यतया उगाई जाने वाली फसलें हैं बाजरा, ज्वार, मक्का, चंवला, ग्वार, जई, रिजका, बरसीम, जौ आदि हैं. हरे चारे के लिए इन फसलों को उगा कर फूल आने के बाद, पकने से पहले, काट कर हरेपन की स्थिति में पशुओं को कुट्टी काट कर या सीधे ही खिलाया जाता है. साल भर हरा चारा उत्पादन के लिए इन फसलों की बुवाई का समय खरीफ ऋतु में जुलाई-अगस्त, रबी में अक्टूबर-नवम्बर व गर्मियों में मार्च-अप्रैल होता है. हरे चारे में ज्वार, बाजरा व मक्का के हरे चारे के साथ दलहनी फसलें जैसे चंवला या ग्वार का हरा चारा भी मिलाकर पशुओं को खिलाना चाहिए. इससे पशुओं को संतुलित पोषण मिलता है.
अकेले इन चारा फसलों को न खिलांए
हरा चारा पशुओं को खिलाने में कुछ सावधानियां रखनी चाहिए. दलहनी हरा चारा जैसे ग्वार, चंवला, रिजका आदि अकेले ही पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए. इनको सूखे चारे के साथ मिलाकर खिलाना चाहिए. इससे पशुओं के पेट में आफरा नहीं आता है. नहीं तो अकेले दलहनी हरा चारा खिलाने पर पशुओं के पेट में आफरा आने से मृत्यु भी हो सकती है. इस प्रकार ज्वार की फसल को 40 दिन पहले पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए. बेहतर तो यही है कि जब फसल में सिट्टे आने लगे तभी काट कर हरे चारे के लिए खिलाना चाहिए.
दवा के छिड़काव वाला चारा भी न खिलाएं
इस अवधि से पहले खिलाने पर इसमें एचसीएन नाम का जहरीला तत्व अधिक मात्रा में होता है. जिससे पशु की मृत्यु भी हो सकती है. हरे चारे के लिए जो भी फसल काट कर पशुओं को खिलाई जा रही है, उस पर काटने से पहले 15 दिन तक किसी भी दवा का छिड़काव किया हुआ नहीं होना चाहिए. यदि फसल पर किसी कीड़े, बीमारी या खरपतवार नियंत्रण के लिए कोई दवा का छिड़काव किया गया है तो उसके 15 दिन बाद ही फसल को हरे चारे के लिए काटना चाहिए.