नई दिल्ली. ज्वार को आमतौर पर सभी प्रकार की अच्छी उर्वरा शक्ति वाली भूमियों में उगाया जा सकता है. अन्य चारा फसलों की अपेक्षा इसमें अधिक तापमान एवं सूखा सहन करने की क्षमता ज्यादा होती है. इसलिए इसकी खेती ऐसे स्थानों पर फायदेमंद है जहा, कम तथा अनियमित वर्षा होती है. वहीं उन्नत प्रजातियों की कटाई की संख्या के आधार पर प्रजातियों को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है. भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) के एक्सपर्ट का कहना है कि ज्वार की अगेती तथा एकल कटाई वाली प्रजातियों के लिये 35-40 किलो ग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर और बहु कटाई वाली किस्मों के लिये बीज दर 20-25 किलो ग्राम प्रति हेक्टर रखते हैं. यदि खेतों में खरपतवारों की समस्या अधिक है तो बीज दर थोड़ी ओर बढ़ा देते हैं.
गर्मी में जल्दी चारा लेने के लिये मार्च के महीने में ज्वार की बहु-कटाई वाली प्रजातियों की बुवाई करते हैं. खरीफ में एकल कटाई वाली प्रजातियों की बुवाई जून-अगस्त जून-अगस्त में की जाते जाती है. बुवाई सामान्यतया छिड़कवां विधि से की जाती है. लाइन में बुवाई हेतु 25-30 सेमी की दूरी पर फसल को बोया जाता है.
खाद एवं उर्वरक के बारे में जानें
सिंचित क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसल में 60-80 किलो ग्राम नाइट्रोजन और 40-50 किलो ग्राम फास्फोरस देना चाहिये.
बहु कटाई वाली प्रजातियों में 80 से 100 किलो ग्राम नाइट्रोजन और 50-60 किलो ग्राम फास्फोरस देना आवश्यक है.
भूमि में पोटाश और जिंक की कमी होने की स्थिति में 40 किलो ग्राम पोटाश तथा 10-20 किलो ग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्ट देना चाहिये.
इन तत्वों की एक तिहाई मात्रा को कार्बनिक तथा जैविक खादों से देने पर लागत में कमी आती है तथा उपज में भी बढ़ोत्तरी होती है.
इसके साथ-साथ भूमि पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है. फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय दी जाती है. बहु कटाई वाली प्रजातियों में हर कटाई के बाद नत्रजन की टाफ ड्रेसिंग करना आवश्यक है.
सिंचाई एवं निराई गुड़ाईः ग्रीष्म ऋतु वाली फसल को 3 से 5 सिंचाईयों की आवश्यकता पड़ती है. बारिश के मौसम वाली फसल में आमतौर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती.
सामान्यतया भूमि तथा फसल की मांग के अनुसार ही सिंचाई करें. यदि खरपतवारों की समस्या अधिक है तो बीज दर बढ़ाकर अथवा एट्राजिन एक किलो ग्राम सक्रिय तत्व को 1000 ली पानी में घोल बनाकर बुवाई के तुरन्त बाद छिड़काव करते हैं.
कटाई कब करें
चारे वाली ज्वार के तने पतले तथा पत्तियाँ अधिक होनी चाहिये. इसे बुवाई के 50-70 दिन बाद 50 प्रतिशत फूल लगने पर काटना चाहिए.
बहु-कटाई वाली किस्मों की पहली कटाई 50-60 दिन तथा बाद की कटाई 25-35 दिन के अन्तर पर करते हैं. इन किस्मों को जमीन से तीन या चार अंगुल ऊपर से काटने पर कल्ले अच्छे निकालते हैं.