नई दिल्ली. इसमें कोई शक नहीं है कि एवियन इन्फ्लूएंजा यानि बर्ड फ्लू पोल्ट्री सेक्टर के बहुत बड़ा खतरा है. क्योंकि इस बीमारी के दूसरे देशों में होने भर से देश में भी ये सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित होता है. पोल्ट्री प्रोडक्ट के दाम गिर जाते हैं और सेक्टर से जुड़े लोगों का नुकसान होता है. इससे निपटने के लिए सरकार कई काम कर रही है. जैसे पोल्ट्री फार्म का रजिट्रेशन करने की प्लानिंग पर काम हो रहा है. ताकि डेटा इकट्ठा किया सके और जब जरूरत पड़े तो जरूरी कदम उठाए जा सकें.
इसके अलावा भी सरकार कई लेवल पर काम कर रही है ताकि बर्ड फ्लू के खतरे को कम किया जा सके और इससे पोल्ट्री सेक्टर को बचाया जाए. इसी कड़ी में पशुपालन एवं डेयरी विभाग (DAHD) ने जानकारी देते हुए कहा कि भारत में बेहद खतरनाक बीमारी एवियन इन्फ्लूएंजा (HPAI) के प्रसार को नियंत्रित करने और रोकने के लिए कई पहलों को लागू किया है.
आवाजाही पर लगाया जा रहा है बैन
DAHD विभाग बताया कि वो देश में एक सख्त “पता लगाने और मारने” की नीति का पालन किया जाता है, जिसमें संक्रमित पक्षियों को मारना, उनकी आवाजाही को प्रतिबंधित करना और प्रकोप के 1 किमी के दायरे में आने वाले क्षेत्रों को कीटाणुरहित करना शामिल है. राज्यों को नियंत्रण उपायों पर दैनिक रिपोर्ट करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें निगरानी और तैयारियों को बढ़ाया गया है, खासकर सर्दियों के दौरान जब प्रवासी पक्षी अधिक जोखिम पैदा करते हैं। HPAI के लिए निगरानी को गैर-पोल्ट्री प्रजातियों तक भी विस्तारित किया गया है, जिसमें परीक्षण किए गए मवेशियों, बकरियों और सूअरों के नकारात्मक परिणाम हैं. संभावित महामारी से निपटने के वैश्विक प्रयास में, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क के साथ H5N1 आइसोलेट्स और संबंधित नमूनों का अनुक्रमण डेटा साझा किया है.
सरकार देती है मुआवजा
बर्ड फ्लू के प्रकोपों के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय संयुक्त प्रकोप प्रतिक्रिया दल के साथ-साथ केंद्रीय टीमों को तैनात किया जा रहा है, और राज्य पशुपालन विभागों और स्वास्थ्य और वन्यजीव विभागों सहित अन्य संबंधित अधिकारियों के साथ नियमित समन्वय बैठकें आयोजित की जा रही हैं. एवियन इन्फ्लूएंजा के प्रकोप को रोकने के लिए भारत परीक्षण और कटिंग नीति का पालन करता है. पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण योजना के तहत, सरकार मारे गए पक्षियों, नष्ट किए गए अंडों और चारे के लिए प्रभावित किसानों को मुआवजा देती है, जिसका खर्च केंद्र और राज्यों के बीच 50:50 होता है.