नई दिल्ली. पशुओं से अधिकतम उत्पादन हासिल करने के लिए उन्हें पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक चारे की जरूरत होती है. इन चारों को पशुपालक या तो खुद उगाता है या फिर कहीं और से खरीद कर मंगाता है. चारे की फसल उगाने का एक खास समय होता है जोकि अलग-अलग चारे के लिए अलग-अलग है. चारे को ज्यादातर हरी अवस्था में पशुओं को खिलाया जाता है तथा इसकी अतिरिक्त मात्रा को सुखाकर भविष्य में प्रयोग करने के लिए स्टोर कर लिया जाता है ताकि चारे की कमी के समय उसका प्रयोग पशुओं को खिलाने के लिए किया जा सके. चारे का इस तरह से स्टोरेज करने से उसमें पोषक तत्व बहुत कम रह जाते हैं.
एक्सपर्ट कहते हैं कि इसी चारे का स्टोरेज यदि वैज्ञानिक तरीके से किया जाय तो उसकी पौष्टिकता में कोई कमी नहीं आती तथा कुछ खास तरीकों से इस चारे को उपचारित करके रखने से उसकी पौष्टिकता को काफी हद तक बढ़ाया भी जा सकता है. पशुओं के लिए चारों को स्टोरेज करने के कुछ तरीके नीचे दिए जा रहे हैं. जिसको जानना हर पशुपालकों के लिए अहम है.
घास को सुखाकर रखना हे बना लें
हे बनाने के लिए हरे चारे या घास को इतना सुखाया जाता है जिससे कि उसकी नमी की मात्रा 15-20 फीसद तक ही रह जाए. इससे प्लांट कोशिकाओं और बैक्टीरिया की एन्जाइम क्रिया रुक जाती है लेकिन इससे चारे की पौष्टिकता में कमी नहीं आती. हे बनाने के लिए लोबिया, बरसीम, लूसर्न, सोयाबीन, मटर आदि लेग्यूम्स तथा ज्वार, नेपियर, जौ, जवी, बाजरा, ज्वार, मक्की, गिन्नी, अंजन आदि घासों का प्रयोग किया जा सकता है. लेग्यूम्स घासों में सुपाच्य तत्व अधिक होते हैं तथा इनमें प्रोटीन व विटामिन एडी व ई भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. दूध उत्पादन के लिए ये फसलें बहुत उपयुक्त ती हैं.
चारे को परतों में सुखाना
जब हरे चारे की फसल फूल आने वाली अवस्था में होती है तो उसे काटकर 1-1 की परतों में पूरे खेत में फैला देते हैं तथा बीच बीच में उसे पलटते रहते हैं. जब तक कि उसमें पानी की मात्रा लगभग 15 फीसदी तक न रह जाए. इसके बाद इसे इकट्ठा कर लिया जाता है तथा ऐसे स्थान पर जहां बारिश का पानी न आ सके वहां इसका भंडारण कर लिया जाता है. दूसरे तरीके के मुताबिक चारे को गट्ठर बनाकर सुखाया जाता है. इसमें चारे को काटकर 24 घंटों तक खेत में पड़ा रहने देते हैं. इसके बाद उसे छोटी-छोटी ढेरियों या फिर गद्वरों में बांध कर पूरे खेत में फैला देते हैं. इन गट्ठरों को बीच-बीच में पलटते रहते हैं जिससे नमी की मात्रा घट कर लगभग 18 फीसदी तक हो जाए.
चारा सुखाने की की तिपाई विधि क्या है
जहां भूमि अधिक गीली रहती हो या जहां बारिश अधिक होती हो, ऐसे स्थानों पर खेतों में तिपाड्यां गाड़कर चारे की फसलों को उन पर फैला देते हैं. इस प्रकार वे भूमि के बिना संपर्क में आए हवा व धूप से सूख जाती है. कई स्थानों पर घरों की क्षत पर भी घासों को सुखा कर हे बनाया जाता है. मध्यम व ऊंचे क्षेत्रों में हे (सूखे घास) को कूप अथवा गुम्बद की शक्ल के ढेर में ठीक ढंग से व्यवस्थित करके रखा जाता है. इनका आकार कोन की तरह होने के कारण इन पर वर्षा का पानी खड़ा नहीं हो पाता जिससे चारे की पौष्टिकता में कमी नहीं आती. वहीं सूखे चारे जैसे भूसा (तूड़ी), पुराल आदि में पौष्टिक तत्व लिगनिन के अंदर जकड़े रहते हैं. जोकि पशु के पाचन तंत्र द्वारा प्रयोग नहीं किए जा सकते हैं. इन चारों का कुछ रासायनिक पदार्थों द्वारा उपचार करके इनके पोषक तत्वों को लिगनिन से अलग कर लिया जाता है. इसके लिए यूरिया उपचार की विधि सबसे सस्ती तथा उत्तम है.