Animal Husbandry: पशुओं को संतुलित आहार देने के फायदे और न देने के नुकसान के बारे में पढ़ें यहां

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प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. पशुपालन में पशुपोषण सबसे अहम है. किसी भी पशुधन से ज्यादा उत्पादन हासिल करने के लिए संतुलित आहार का एक विषेष महत्व है. व्यावसायिक पशुपालन में खर्च, पशु को खरीदने, उनके रहने की व्यवस्था करने, भोजन, स्वास्थ्य और फिर से उत्पादन करने आदि पर होता है. इस लागत का ज्यादातर हिस्सा, लगभग 70 प्रतिशत केवल पशुओं के फीड पर ही खर्च हो जाता है. इसलिए सस्ता और संतुलित आहार इस व्यवसाय की सफलता का मुख्य आधार है. किसान अपने पारंपरिक ज्ञान के आधार पर, जो उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी हासिल हुआ है और स्थानीय क्षेत्र में उपलब्ध एक या दो खाद्य पदार्थ जैसे कि चोकर, खली, चुनी, अनाज के दाने आदि और मौसम के हिसाब से हरा चारा तथा फसल अवशेष जैसे भूसा अपने पशुओं को खिलाते रहते हैं.

बिहार पशु विज्ञान पशु विश्वविद्यालय के डा. पंकज कुमार सिंह कहते हैं कि पशुओं को दिए जाने वाले चारे और आहार की मात्रा ज्यादातर उनकी जरूरतों से कम या अधिक होती है. कई आहार में प्रोटीन, ऊर्जा या खनिज का असंतुलन हो जाता है. बहुत कम किसान अपने पशुओं को रोजाना खनिज मिश्रण और नामक खिलाते है, जो खिलाते भी हैं वो 25 से 50 ग्राम ही देते हैं. असंतुलित आहार से पशु दूध कम देता है. जबकि उत्पादन लागत अधिक रहती है और पशु का स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है. इसलिए, किसानों को दुधारू पशुओं के आहार संतुलन पर धान देना बेहद जरूरी है.

संतुलित आहार क्या है
संतुलित आहार वह आहार है, जिसमें पशुओं के शारिरिक अवस्था और प्रोडक्टिविटी के मुताबिक विभिन्न आवश्यक तत्व उचित मात्रा और अनुपात में मौजूद होते हैं. कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण, विटामिन व पानी पशुओं के लिए जरूरी पोषक तत्व हैं. जरूरी पोषण व्यवस्था से, हर ब्यात में अधिक उत्पादन मिलता है और दो ब्यातों के बीच का अंतर भी कम हो जाता है. इसके साथ ही स्वस्थ पशु की प्रजनन क्षमता व रोग प्रतिरोधक शक्ति अच्छी रहती है. जबकि पशु प्रोडक्शन की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है. यदि पशुओं को संतुलित आहार नहीं दिया जाए तो पशु कुपोषण का शिकार होकर जाते हैं.

क्या-क्या दिक्कतें होती हैं
बछड़े-बाछियों की ग्रोथ रूक जाएगी. वे ज्यादा उम्र में वयस्क होंगें.

रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाएगी और पशु कमजोर एवं बीमार पड़ जाएंगे.

दूध उत्पादन, फैट एवं एसएनएफ मे कमी होगी. पशुओं की प्रजनन क्षमता घट जाएगी.

व्यस्क मादा समय पर गर्मी में नहीं आएगी और गर्भधारण की संभावना कम हो जाएगी. गाय-भैंस बांझ हो जाएगी.

गर्भधारण कर लेने पर गर्भपात होने की संभावना रहेगी. बच्चा कमजोर पैदा होगा.

साडों में उत्तेजना कम हो जाएगी और स्पर्म के निष्क्रिय होने की संभावना रहेगी.

भारवाहक और खेती में काम आने वाले पशुओं की कार्य क्षमता कम हो जाएगी.

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