Fish Diseases: मछली की ऐसी बीमारियां जो कर देती हैं बड़ा नुकसान, जानें यहां

मछली में कुछ बैक्टीरियल बीमारियां होती हैं

प्रतीकात्मक तस्वीर।

नई दिल्ली. फिश फार्मिंग में आजकल युवा हो या किसान सभी अपने हाथ आजमा रहे हैं. मछली पालन अब पहले के मुकाबले तेजी से साथ बढ़ रहा है. मछली पालन करके लोग अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं. हालांकि मछलियों को सबसे अधिक नुकसान बीमारी के कारण होता है. अगर एक बार मछली को बीमारी लग गई तो इससे मछली पालन करने वाले को नुकसान हो सकता है. इसलिए सबसे जरूरी है कि मछली को किसी तरह की बीमारी न लगे दें. यदि लग गई है तो उसका सही समय पर इलाज होना भी जरूरी है. वैसे तो मछलियों में कई तरह के रोग होते हैं, जिसमें जीवाणु जनित रोग भी होता है. जिसे बैक्टीरियल डिसीज भी कहा जाता है.

मछली में कुछ बैक्टीरियल बीमारियां होती हैं, आइए इस आर्टिकल से आपको इन बीमारियों के लक्षण, इलाज के बारे में जानकारी दे रहे हैं. मछली की बैक्टीरिया बीमारी के बारे में अच्छी खासी जानकारी के लिए इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़िए.

ड्रॉप्सी बीमारी: ड्रॉप्सी बीमारी उन पोखरों में होती है, जहां पर्याप्त भोजन की कमी होती है. इसमें मछली का धड़ उसके सिर के अनुपात में काफी पतला हो जाता है और वह दुबली हो जाती है. मछली जब हाइड्रोफिला नाम के जीवाणु के संपर्क में आ जाती है तो या रोग पनप जाता है. प्रमुख लक्षण में शल्कों का बहुत अधिक मात्रा में गिरना और पेट में भर जाता है. मछलियों को पर्याप्त खाना देना और पानी की गुणवत्ता बनाए रखना. पोखरे में 15 दिन के अंतराल पर 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से चूना डालना चाहिए.

वाइब्रियोसिस: ये बिब्रिया प्रजाति के जीवाणु से होती है. इसमें मछली खाना नहीं खाती है. उसका रंग काला पड़ जाता है. मछली अचानक मरने लगती है. या मछली की आंखों को ज्यादा प्रभावित करता है. सूजन के कारण आंख बाहर निकल आती है. सफेद धब्बे पड़ जाते हैं. अगर इसका इलाज करना है तो आक्सीटेट्रासाईक्लिन तथा सल्फोनामाइड को 8 से 12 ग्राम प्रति किलोग्राम भोजन के साथ मिलकर देना चाहिए.

एडवर्डसिलोसिस: एडवर्डसिलोसिस बीमारी को सड़कर गल जाने वाला रोग भी कहते हैं. एडवर्ड टारडा नाम के बैक्टेरिया से होता है. शुरू से मछली इसमें दुबली हो जाती है. शल्क गिरने लगते हैं. फिर पेषियों में गैस कैसे फोड़े बन जाते हैं और मछली से बदबू भी आने लगती है. इसके इलाज के लिए पानी की गुणवत्ता की जांच करना चाहिए. 0.04 पीपीएम आयोडीन घोल में 2 घंटे के लिए मछली को रखने से बीमारी ठीक हो जाती है.

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