नई दिल्ली. मछली पालन में सही मैनेजमेंट आपको मालामाल कर सकता है. अगर सही तरह से मछली पालन करेंगे तो मछली की ग्रोथ तेजी के साथ होगी और फिर प्रोडक्शन भी ज्यादा मिलेगा. जिससे आपको मछली पालन में ज्यादा मुनाफा कमाने का मौका मिल जाएगा. इसलिए बेहद ही जरूरी है कि मछली पालन में सही मैनेजमेंट को सीख लिया जाए. जैसे जुलाई का महीना शुरू हो गया है तो इस महीने में कुछ अहम बातों का ध्यान मछली पालन में रखा जाता है. जिससे मछली पालन में फिश फार्मर्स को फायदा होता है. आइए इस बारे में जानते हैं.
पशुपालन एंव मत्स्य संसाधन विभाग बिहार सरकार की ओर से बताया गया है कि बीज उत्पादक अपने हैचरी से रोहु, कतला, मृगल, ग्रास कार्प, कॉमन कार्प एवं सिल्वर कार्य के स्पॉन का उत्पादन गहन प्रबंधन से करना चालू रखें.
टिप्स यहां पढ़ें
नर्सरी तालाब में स्पॉन डालने के 15-20 दिनों के बाद ही रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करें.
नर्सरी तालाब की तैयारी के बाद स्पॉन का संचयन 15-20 लाख प्रति एकड़ की दर से करें.
रियरिंग तालाब की तैयारी के बाद फ्राई का संचयन 1.5 से 2 लाख प्रति एकड़ की दर से करें.
तालाब में चूने का प्रयोग 15 दिनों के अन्तराल पर पी. एच. मान के अनुसार 10-15 किलो ग्राम प्रति एकड़ की दर से करें.
जुलाई माह में बरसात का मौसम और आद्रता अधिक होने के कारण तालाब के पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम हो जाने की संभावना बनी रहती है, इस समस्या से बचने के लिए शाम को तालाब के पानी को पंप सेट की मदद से तालाब में ही फैला कर गिराएं या घुलनशील ऑक्सीजन बढ़ाने वाली दवा का प्रयोग 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 15 दिन पर सुखा छिड़काव करें.
माह में एक बार जैविक खाद के रूप में गोबर 400 किलो प्रति एकड़ या सरसों, राई की खल्ली 100 किलो प्रति एकड़ एवं सिंगल सुपर फॉस्फेट 15-20 किलो प्रति एकड़ की दर से घोल कर छिड़काव करें. रासायनिक एवं जैविक उर्वरक के बीच का अन्तराल कम से कम 15 दिन होना चाहिए। पानी ज्यादा हरा होने पर चुना एवं रासायनिक उर्वरक का प्रयोग बन्द कर दें.
तालाब का पानी ज्यादा हरा होने पर 20 किलो प्रति एकड़ की दर से फिटकिरी का घोल कर छिड़काव करें. मौसम खराब रहने पर तालाब में पूरक आहार का प्रयोग नहीं करें.
तालाब में मछलियों को संक्रमण से बचाव के लिए प्रतिमाह 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से पोटॉशियम परमेंगनेट का प्रयोग घोल कर करें.