Fish: तुलसी और नीम से मछलियों का इस तरह से कर सकते हैं इलाज

तालाब में खाद का अच्छे उपयोग के लिए लगभग एक सप्ताह के पहले 250 से 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर बिना बुझा चूना डालने की सलाह एक्सपर्ट देते हैं.

तालाब में मछली निकालते मछली पालक

नई दिल्ली. मछलियों के बीमार होने से उनकी ग्रोथ रुक जाती है. वहीं एक मछली जब बीमारी हो जाती है तो तालाब के अंदर मौजूद अन्य मछलियों को भी बीमार करने लग जाती है. इसलिए मछलियों को बीमारियों से बचाना बेहद ही जरूरी है. उत्तर प्रदेश मछली पालन विभाग के एक्सपर्ट की मानें तो मछली के चार रोगजनक जीवाणुओं में एरोमोनास हाइड्रोफिला, स्यूडोमोनास फ्लुओरेसेन्स, एसरेशिया कोलाय और मिक्सोबैक्टीरिया होते हैं. इनसे मछलियों को औषधीय इलाज से भी बचाया जा सकता है. यानि जड़ी—बूटियों से इन बैक्टीरिया को खत्म किया जा सकता है.

लाइव स्टॉक एनिमल न्यूज (Livestock Animal News) यहां आपको इन्हीं बैक्टीरिया को खत्म करने के तरीके के बारे में बताएंगे.

कैसे करना है इलाज
इन बैक्टीरिया के खिलाफ नीम से तैयार किए गए एक उत्पाद, एक्वानीम का परीक्षण किया जा चुका है और पाया कि उनमें बेहतरीन जीवाणुरोधी प्रभाव देखा गया.

एक्सपर्ट ने बताया कि मछली के जीवाणु-जनित बीमारियों जैसे कि रक्तस्रावी सेप्टिसीमिया, फिन सड़ांध और पूंछ सड़ांध, जीवाणु गिल रोग और ड्रॉप्सी लक्षण वाले रोगों के लिए बेहतर है.

जलकृषि तालाब में प्रयोग के लिए एक्कानीम को 10 पीपीएम की दर से उपचार करने की सिफारिश की जाती है.

सोलेनम ट्रायलोबम, एंड्रोग्राफीस पैनिकुलाटा और सोरेलिको रीलीफोलिया से प्राप्त जीवाणुरोधी हर्बल उत्पाद को आर्टेमिया में जैव-अतिक्रमित किया गया.

पी मोनोडोन के पीएल को खिलाया गया, इससे पोस्ट लार्वा की जीवित रहने की दर में वृद्धि हुई.

रमण (2004) ने भारतीय औषधीय पादप वासा (अधाटोडा वासिका) को एक महत्वपूर्ण मत्स्य रोगजनक जीवाणु स्युडोमोनास फ्लोरेसेन्स जो मछली के कई बैक्टीरियल बीमारियों में शामिल है, के खिलाफ उल्लेखनीय जीवाणुरोधी गतिविधि पाया गया.

वहीं तुलसी (ऑसिमम सैक्टम) में भी शक्तिशाली रोगाणुरोधी गुण हैं. यह ई. कोलाय, बी. एन्प्रेसीस, एम. ट्यूबरकुलोसिस के विकास को रोकता है.

यह सांस लेने वाले रास्ते संक्रमण, ब्रोंकाइटिस, क्रॉनिक खांसी और बच्चों के गैस्ट्रिक रोगों में उपयोगी है. तुलसी में उर्सोलिक एसिड मौजूद है, जिसमें एलर्जी विरोधी गुण हैं.

तुलसी की पत्तियों से अलग-अलग जैविक रूप से सक्रिय यौगिकों को पृथक किया गया है जिसमें आर्सोलिक एसिड, एपिजेनिन, यूजेनॉल और ल्यूटोलिन शामिल हैं.

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