नई दिल्ली. बकरी और भेड़ों में परजीवी संक्रमण एक गम्भीर समस्या है. मौजूदा समस्या से निजात पाने के लिए कीड़ों को खत्म करने वाली दवा का प्रयोग किया जाता है. देखने में आया है कि इन इस तरह की दवा के बार-बार और गैर जिम्मेदारी से इस्तेमाल से कीड़ों में इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधकता पैदा होने लगी है. असल में पिछले 20 वर्षों से किसी नए कीड़े मारने की दवा का विकास न होने से हमारी निर्भरता वर्तमान में उपलब्ध दवाओं पर बढ़ती जा रही है. पशु चिकित्सकों और पशु पालन के लिए ये एक चुनौती है कि कैसे इस समस्या से निपटा जा सके.
समझा जाता है कि कीड़ों की प्रतिरोधकता का एक आनुवंशिक आधार है. लगातार दवाओं के प्रयोग से इन दवाओं के प्रति सुग्राही कीड़े मर जाते हैं और प्रतिरोधी कीड़े जीवित बचे रहे जाने से ऐसे परजीवियों की संख्या लगातार बढ़ती जाती है जो कीड़ों के लिए प्रतिरोधी हैं. समय-समय पर इन परजीवियों से उत्पन्न प्रतिरोधी अंडे वातावरण में प्रतिरोधी परजीवी संख्या को बढ़ाते रहते हैं. कभी-कभी लगातार कम मात्रा में परजीवीनाशियों का उपयोग भी परजीवियों में उनके प्रति प्रतिरोधकता को जन्म देता है और परजीवी समूह में प्रतिरोधी हो जाता है. आमतौर पर देखा गया है कि एक कीड़ों की मारने वाली दवा का बार-बार एवं कम मात्रा में प्रयोग प्रतिरोधकता को जन्म देता है.
दवाओं के खर्च को कम करने की कोशिश
कीड़ों में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधकता को रोकने के लिए एवं पहुंच को बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि इन दवाओं का प्रयोग कम किया जाए. जिससे कीड़ों के समूह में पहुंच एवं प्रतिरोधी कीड़ों की संख्या में एक सन्तुलन बना रहे. वर्तमान में वैज्ञानिकों की कोशिश है कि कुछ ऐसे उपयुक्त और कारगर संकेतकों का विकास किया जा सके. जिससे पता लगाया जा सके कि किस पशु में आवश्यक रूप से परजीवीनाशी के प्रयोग की आवश्यकता है. ऐसा करके न सिर्फ इन दवाओं के खर्च को कम किया जा सकता है. ऐसे संकेतकों में उत्पादन की कमी, पशुओं में पाई गई एनिमिया और मल जांच में पाये गये अंडों की संख्या मुख्य है.
चरागाह की व्यवस्था की जाए
इसका उद्देश्य पशुओं को सुरक्षित चरागाह एवं संक्रमण विहीन चराई प्रदान करना है. एक सुरक्षित चरागाह में पशु चराई एक खास अवधि के लिए की जाती है और फिर उसे कुछ समय के लिए खुला एवं चराई के बिना छोड़ दिया जाता है. यह अवधि अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग मौसम में अलग अलग हो सकती है. वहीं दो महीने की चराई बंद रखकर चरागाह को सुरक्षित रखा जा सकता है. चरागाह को छोटे-छोटे भागों में बांट कर चक्रण क्रम में चराई भी संक्रमण की कम करने का एक कारगर उपाय है. इसके अतिरिक्त चरागाह की घास को समय-समय पर काट कर जोत कर तथा दोबारा बिजाकर भी संक्रमण को सीमित किया जा सकता है.