नई दिल्ली. बकरी आवास को ऊंची जगह पर बनाना चाहिए. वहां से बारिश के पानी की निकासी की सही व्यवस्था होनी चाहिए. यदि छत के ऊपर छप्पर डाल दिया जाये या फेलने वाली बेलें चढ़ा दी जायें तो आवास के अन्दर गर्मी का प्रभाव कम हो जाता है. लोहे की चद्दरों वाले आवासों के ऊपर सफेद पेंट भी किया जा सकता है. बकरियों को आवास में छत से ढकी एवं खुली दोनों जगहों की जरूरत पड़ती है. ढकी जगह से जानवर धूप, ओस एवं वर्षा से बचता है तथा खुली जगह (बाड़ा) में वह आराम तथा व्यायाम करता है.
पूरे आवास का 1 से 3 ढकी जगह के रूप में तथा 2 से 3 हिस्सा बाड़े के रूप में रखा जाता है. बकरे एवं बकरियों को उनकी उम्र एवं कार्य के अनुसार जगह की जरूरत घटती-बढ़ती रहती है. बकरियों को जरूरत के मुताबिक जगह न देने पर उनका स्वास्थ गिरता है, उनकी बढ़त कम हो जाती है तथा उत्पादन क्षमता में कमी आती है.
बकरियों के लिए जगह कितनी होती है जरूरत
दीवारों में हवा आने के लिये जो जगह बनायी जाती है उसी से आवास में रोशनी एवं धूप भी आती है.
बकरी आवासों का हवादार होना बेहद ही जरूरी है. मौसम के अनुसार हवा के आने-जाने की जगहों को कम ज्यादा किया जा सकता है.
खुले आसमान के नीचे रखने के बजाय बकरियों को यदि एक ऐसी जगह पर रखा जाये जो कि केवल ऊपर से ढका हो तो उससे भी उनको राहत मिलती है.
30 प्रतिशत गर्मी ऊपर से आती है। ऊपर ढकने से यह गर्मी पशुओं तक नहीं पहुंच पाती हैं.
ज्यादातर गांवों में पशुओं के लिये छप्पर की छतें बनाई जाती हैं तथा बड़े में सीमेंट या लोहे की जीआई. नालीदार चद्दरों से पशुओं के बाड़े बनाये जाते हैं.
एसबेस्टस अथवा लोहे की चद्दरों की तुलना में छप्पर गर्मी अथवा ठंड रोकने में ज्यादा अनुकूल हैं. वहीं छप्पर जल्दी खराब हो जाते हैं तथा इनमें आग इत्यादि लगने का भय बना रहता है.
छप्पर पर मिट्टी के गारे, भूसे एवं तारकोल को मिलाकर लेप करके इसे सुधारा जा सकता है, जिससे कि ये जल्दी खराब नहीं हों, भीगे नहीं तथा आग भी देर से पकड़े.
प्रयोग से यह देखा गया है कि सुधरे छप्पर, अन्य छप्परों से ज्यादा अच्छे तथा गर्मी, ठण्ड तथा नमी को रोकने में सहायक होते हैं.