नई दिल्ली. गर्मी का मौसम चरम सीमा पर है. इस मौसम में पशुओं के लिए हरे चारे की समस्या पैदा हो जाती है. दुधारू पशुओं से अधिकतम दूध लेने के लिए उन्हें अच्छी मात्रा में पौष्टिक चारे की जरूरत होती है. इन चारों को पशुपालक या तो खुद उगाता है या फिर कहीं और से खरीद कर मंगाता है. चारे को ज्यादातर हरी अवस्था में पशुओं को खिलाया जाता है और इसकी अतिरिक्त मात्रा को सुखाकर भविष्य में प्रयोग करने के लिए स्टोर कर लिया जाता है ताकि चारे की कमी के समय उसका प्रयोग पशुओं को खिलाने के लिए किया जा सके.
अगर आप भी अपने पशुओं के लिए पौष्टिक और हरे चारे की समस्या से परेशान हैं, तो इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बता रहे हैं कि कैसे आप पशुओं का स्टोर करके रख सकते हैं, जिससे कमी होने के समय पर भी आप अपने दुधारू पशुओं को भरपूर फीड दे सकेंगे.
हे बनाने के लिए हरे चारे को अच्छी प्रकार और समान रूप से सुखाना बहुत जरूरी होता है. हमारे देश में धूप और हवा में सुखाकर ही हे तैयार की जाती है. आमतौर पर जमीन पर फैलाकर सुखाने की विधि से ही हे तैयार की जाती है.
जमीन पर हरे चारे को सुखाने की विधि: इस विधि में चारे को काटने के बाद जमीन पर 25-30 सेंमी. मोटी सतहों या छोटे-छोटे ढेरों में फैलाकर धूप में सुखाया जाता है. यदि धूप अधिक तेज न हो तो हरे चारे को अधिक पतली सतहों में फैलाया जाता है. जब चारे की अधिकांश उपरी पत्तियां सूख जाती हैं और थोड़ा कुरकुरापन आ जाता है तो चारे को छोटे-छोटे ढेरों में इकट्ठा कर लिया जाता है. मार्च-अप्रैल के महीने में चारे को इतना सूखने में 3-4 घंटा लगता है.
तेज धूप में समय और भी कम लगता है: धूप के तेज होने पर और भी कम समय लगता है. बनाए गए ढेरों की पत्तियां जब सूख जाएं लेकिन मुड़ने पर एक दम न टूटने लगे इससे पहले ही ढेरों को पलट देना चाहिए. चारे के ढेरों को ढीला रखा जाता है जिससे उसमें हवा आती जाती रहे. उलट-पलट कर यह कार्य दूसरे दिन सुबह ही करना चाहिए जिससे पत्तियों में कुरकुरापन कम होता है और मुलायम पत्तियों/दलहनीय चारों की पत्तियां झड़कर नष्ट न हो जाएं. दूसरे दिन शाम को इन छोटी-छोटी ढेरियों को 10-15 के ढीले ढेरों में इकट्ठा कर लेना चाहिए। पुनः इन सूखे ढेरों को अगले दिन तक पड़े रहने देना चाहिए जिससे कि स्टोर से पूर्व चारा भली-भांति सूख जाए. तैयार की हुई हे को बाड़े, छप्पर या अन्य किसी सुरक्षित पर रख लें.
हे : सुखाए हुए चारे को हे कहते हैं. यह वैज्ञानिक विधि से इस प्रकार तैयार की जाती है जिससे चारे का हरापन बना रहे और तैयार किए जाने के बाद इसके पोषण मान में बिना किसी विशेष हानि के गोदाम में रखा जा सकता है. हरे चारे में नमी की मात्रा 80 प्रतिशत हो जाती है. उत्तर भारत में हे तैयार करने का समय मार्च-अप्रैल होता है. मार्च-अप्रैल में आसमान में धूप अच्छी होती है और आसमान साफ होता है. वायुमंडल में आर्द्रता भी कम होती है, जिससे चारा जल्दी से सूख जाता है और हे तैयार हो जाता है.