नई दिल्ली. इंसान ही नहीं पशुओं के लिए भी प्राथमिक चिकित्सा यानि फर्स्ट एड जरूरी हैं. क्योंकि हादसे किसी भी वक्त पशुओं के साथ भी हो सकते है. हालांकि फर्स्ट एड के जरिए हम पूराा इलाज करने से पहले पशुओं की मदद कर सकते हैं. इससे पशु कभी-कभी स्वस्थ भी हो जाता हैं और बीमारी बड़ा रूप धारण नहीं कर पाती. पशुपालक को वेटरनरी डॉक्टर को दिखाने का टाइम मिल जाता है और उन्हें भी पशु के उपचार में आसानी हो जाती है. प्राथमिक चिकित्सा का पशु चिकित्सा में बहुत महत्व होता है. इसलिए पशुपालकों तथा किसानों को प्राथमिक चिकित्सा पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
बकरियों द्वारा विषैला पदार्थ खा लेना, अतिसार, अत्यधिक रक्तस्राव, हड्डी का टूटना व जोड़ों का हट जाना आम बात है. ये अवस्थाएं दर्द पहुंचाने वाली होती हैं. कई बार जानलेवा भी हो जाती हैं. इसलिए यह आवश्यक है कि पशु रोग या पशु दशा की पहचान सबसे पहले की जाए. सबसे पहले यह पता चले कि कोई पशु बीमार है तो उसे स्वस्थ पशुओं से अलग कर दूर बांध देना चाहिए. ऐसे बीमार पशु को हवादार, शान्त और साफ जगह पर रखना चाहिए और तुरंत घरेलू उपचार देना चाहिए. बीमार पशु को प्राथमिक चिकित्सा तुरंत देनी चाहिए.
पशुओं की ब्लीडिंग को ऐसे ठीक करें: अक्सर पशुओं को ब्लीडिंग होती है. कटी हुई नली पर दवाब देना ताकि रक्त का बहना रुक जाए इसके लिए कटे स्थान को 2-3 सेंटीमीटर ऊपर व नीचे से बांध देना चाहिए. कई बार कटे हुए स्थान पर बांध पाना संभव नहीं होता है. ऐसी स्थिति में तहकर मोटा किए हुए कपड़े को फिटकरी के घोल में भिगोकर कटे हुए स्थान पर जोर से दबाकर रखना चाहिए. ब्लीडिंग वाले स्थान पर बर्फ या ठंडे पानी को भी लगातार डालकर खून का बहना रोका जा सकता है.
हड्डी का टूटना: कई बार बकरियों में हड्डी टूट जाती है. यह दो प्रकार का होता है. पहली स्थिति में हड्डी टूटने के बाद चमड़े के अंदर ही रहती है. जबकि दूसरी स्थिति में बाहर आ जाती है. हड्डी का टूटकर चमड़े से बाहर निकल जाना खतरनाक स्थिति है। टूटी हड्डी को हिलने—डुलने से बचाने के लिए जरूरी है कि उन्हें बांस की खपच्चियों से बांध दें. टूटी हड्डी यदि बाहर निकल आई हो तो उसे साफ कपड़े से ढंक देना चाहिए. इस स्थिति में यह भी जरूरी है कि पशु हिले ना.
खुली चोट: चोट लगने या दुर्घटना ग्रस्त होने पर शरीर पर घाव हो जाते हैं. जख्म दो प्रकार के हो सकते हैं. एक जिनमें चमड़ी फटी न हो व दूसरी जिसमें चमड़ी फट गई हो. जब चमड़ी फटी हुई नहीं रहती तो प्रायः चोट लगने पर उस जगह सूजन आ जाती है या फिर उसके नीचे खून का जमाव हो जाता हैं. दोनों ही हालात में बर्फ या ठंडे पानी से चोट की जगह सिकाई करने पर प्रायः फोड़ा नहीं बन पाता. जब चोट पुरानी हो जाती हैं तो गर्म पानी से सिकाई करना फायदेमंद होता है. खुली हुई चोट यदि साधारण हो तो उसे साफ करके कोई भी एन्टीसेप्टिक क्रीम लगाना चाहिए. अगर खून बह रहा हो तो टिंचर बैन्जोइन लगाना फायदेमंद हैं.