नई दिल्ली. आपने एक कहावत तो जरूर सुनी और पढ़ी होगी कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर सकती है. अगर आप मछली पालक है तो आपको ये भी जान लेना चाहिए कि उसी तरह से एक बीमार मछली पूरे तालाब की मछलियों को बीमार भी कर सकती है. दरअसल, मछलियों में बैक्टीरिया और पैरासाइट के चलते छोटी-बड़ी 15 ऐसी बीमारियां होती हैं जो आपके कारोबार को नुकसान पहुंचा सकती हैं. यदि सयम रहते इनकी पहचान और फिर मछलियों का इलाज व रोकथाम नहीं किया गया तो यह पूरे तालाब की मछलियों में फैल जाती हैं. मछलियों की बीमारी की बात की जाए तो उसें ऐसी ही एक बीमारी अल्सर है. इस बीमारी के फैलने के चलते मछलियों की मौत भी हो जाती है.
इन बातों का रखें ख्याल
दिक्कत ये है कि एक बीमार मछली के कारण तालाब की सारी मछलियों तक बीमारी पहुंच जाती है. जबकि बाजार में बिकने के कारण खाने वाले लोगों तक भी बीमारी पहुंच सकती है. बीमारी से मछलियों को बचाने के लिए तालाब की समय-समय पर सफाई होनी चाहिए. मछलियों का दाना गुणवत्ता वाला और संतुलित होना चाहिए. सबसे खास बात बीमार मछलियों को अलग रखना चाहिए. तालाब के आकार के हिसाब से ही तालाब में मछलियों की संख्या ही रखी जाए. तालाब में और दूसरी मछलियों को न पनपने नहीं देना चाहिए.
अल्सर की पहचान इस तरह करें
एक्सपर्ट कहते हैं कि फंगस यानि फफूंद के चलते मछलियों को अल्सर रोग हो जाता है. सिर्फ तालाब, टैंक में पाली जाने वाली मछलियों को ही नहीं बल्कि नदी में रहने वाली मछलियों में भी अल्सर की बीमारी होना आम है. एक्सपर्ट का मानना है कि नदी की अपेक्षा खेत के पास बने तालाब में पलने वाली मछलियों में अल्सर होने की संभावना ज्यादा होती है. इस बीमारी की पहचान मछलियों के शरीर पर खून जैसे लाल धब्बे होने है. जबकि कुछ समय बाद ये धब्बे घाव का रूप ले लेते हैं और इससे मछलियों की मौत हो जाती है. मछलियों को अल्सर से बचाने के लिए तालाब को किनारे से ऊंचा उठा देना चाहिए. या फिर बांध बना देना चाहिए ताकि आसपास का गंदा पानी न जाए. बरसात में बारिश के बाद तालाब के पानी का पीएच लेवल चेक होना चाहिए. बारिश के दौरान तालाब के पानी में 200 किलो के करीब चूना मिलाना चाहिए.
अल्सर का कैसे करें इलाज
अगर तालाब की कुछ मछलियों को अल्सर की समस्या हो जाए तो सबसे पहले उन्हें अलग कर देना ही सही है. अगर तालाब की ज्यादातर मछलियों में अल्सर बीमारी फैल गईं हैं तो तालाब में कली का चूना जिसे क्विक लाइम भी कहा जाता है उसके ठोस टुकड़े डाल देना चाहिए. एक्सपर्ट के मुताबिक प्रति एक हेक्टेयर के तालाब में कम से कम 600 किलो चूना डालना चाहिए. चूने के साथ ही 10 किलो ब्लीचिंग पाउडर प्रति एक हेक्टेयर के हिसाब से डालना चाहिए. इसके साथ ही लीपोटेशियम परमेगनेट का घोल भी प्रति एक हेक्टेयर के तालाब में एक लीटर तक डालें
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