नई दिल्ली. जुई का चारा पशुओं के लिए फायदेमंद है. ये पशुओं की पाचन सुधारने के साथ—साथ दूध उत्पादन को बढ़ाने में भी कारगर है. यही वजह है कि हमेशा से ही इसका हरा और सूखा चारा पशुओं को दिया जाता रहा है. पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) की ओर से दी गई है कि जानकारी के मुताबिक इसकी बुवाई का समय और तरीका जानना जरूरी है. जई की बुवाई अक्टूबर से फरवरी तक की जाती है. वैसे बुवाई जल्दी करने पर कटाईयां अधिक मिलने से उपज अच्छी मिलती है. जई की बुवाई छिटकावां विधि के साथ-साथ पंक्तियों में सीड़ड्रील से की जाती है.
खाद की मात्रा को जमीन के परीक्षण के आधार पर प्रयोग किया जाता है. आमतौर पर चारे वाली फसल के लिए 100-120 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 60 क्रिलो ग्राम फास्फोरस व 30 क्रिलो ग्राम पोटाश प्रति हेक्ट. प्रयोग किया जाता है.
सिंचाई कितनी बार करें
नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा को बुवाई के समय ही दिया जाता है.
नाइट्रोजन का शेष भाग दो किस्तों में फसल की बुवाई के 25 दिन बाद (पहली सिंचाई के समय) व बाकी पहली कटाई के बाद डालते हैं.
सिंचाईयों की संख्या बुवाई के समय, जमीन के प्रकार एवं जलवायु पर निर्भर करती है. वैसे पहली सिंचाई बुवाई के 25 दिन बाद की जाती है तथा बाद वाली सिंचाईयां 15-20 दिन के अन्तराल पर करते हैं.
कब करें कटाई
जई की फसल की कटाई कई बार की जाती है फसल में बाली आने से पूर्व ही फसल को काट लिया जाता है.
कटाइयों की संख्या मुख्य रूप से फसल की प्रजाति, बुवाई का समय, मृदा उर्वरता तथा सिंचाई सुविधा पर निर्भर करती है.
आमतौर पर कटाई 50 प्रतिशत फूल की अवस्था पर करने से उपज अधिक मिलती है। यह अवस्था बुवाई के 55-60 दिन पर आ जाती है.
इस समय पौधे 60-65 से.मी. लम्बे होते हैं। दूसरी कटाई पहली कटाई के 30-35 दिन पर की जाती है तथा तीसरी कटाई बीज पकने पर करते हैं. इससे चारे के साथ-साथ दाना भी प्राप्त होता है.
इन तरीकों के माध्यम से जई का 45 से 60 टन हरा चारा प्रति हेक्टयर प्राप्त किया जा सकता है.
यदि फसल प्रथम कटाई के बाद दाने के लिए छोड़ते हैं तो 25 टन हरा चारा, एक टन दाना व दो टन भूसा प्राप्त होता है.