Fodder: हरे चारे की पैदावार बढ़ाने के लिए इस फसल की नई किस्मों का हुआ ट्रायल, दूध उत्पादन बढ़ाने में है कारगर

चारे की फसल उगाने का एक खास समय होता है, जोकि अलग-अलग चारे के लिए अलग-अलग है.

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. हरे चारे की कमी को पूरा करने और इससे दूध उत्पादन बढ़ाने को लेकर चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार की कृषि वैज्ञानिकों की टीम ने सोनीपत के गांव बैयापुर और जाहरी में जई की कई फसलों की किस्म का निरीक्षण किया. टीम ने जई की फसल की बारीकी से जांच की और अपने पास रिकॉर्ड महफूज कर लिया. टीम जई फसल को पूरी तरह से तैयार करने के बाद रिकॉर्ड का मिलान करेगी और उत्पादन का रिकॉर्ड भी दर्ज करेगी. ताकि पता लगाया जा सके कि उगाई गई फसल का ग्रोथ रेट क्या है.

गौरतलब है कि हरे चारे की पैदावार को बढ़ाने के लिए यह प्रयास किया गया है. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जई की चार किस्म में तैयार की गई थी. रबी सीजन में इन किस्म के ट्रायल के लिए किसानों को बीज दिए गए थे. हर किस्म को एक क्षेत्र में लगाया गया था. बैयापुर और जाहरी गांव में चार किस्म को उगाया गया. रबी सीजन का आधा समय बीत चुका है, ऐसे में लगाई गई किस्मों की ग्रोथ की जांच के लिए कृषि विश्वविद्यालय की टीम कुलदीप दहिया के नेतृत्व में सोनीपत पहुंची और फसल का बारीकी से परीक्षण किया.

दर्ज किया जाएगा रिकॉर्ड
इस संबंध में सोनीपत के कृषि उपनिदेशक डॉ. पवन शर्मा ने बताया की जई की नई प्रकार की किस्मों का ट्रायल लिया जा रहा है. इन किस्म की बिजाई रबी सीजन के दौरान बैयापुर और जाहरी गांव में की गई थी. हिसार कृषि विश्वविद्यालय की टीम ने दोनों गांव में पहुंचकर फसलों का निरीक्षण किया है. इस दौरान सोनीपत कृषि विभाग की तरफ से भी अधिकारी इस निरीक्षण में शामिल रहे. फसल के पकने के बाद इसके उत्पादन का रिकॉर्ड दर्ज किया जाएगा.

पशु के लिए बेहतरीन है जई की फसल
कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को फसल उगाने के लिए जई की चार किस्म के बीज दिए गए थे. इसमें एचजी 8, एचएफओ 1707, ओएस 403, एचएफ 0906 शामिल है. इन किस्म से प्रति हेक्टेयर 550 क्विंटल हरा चारा मिल सकता है. इसके अलावा किसान अपना खुद का बीज भी तैयार कर सकते हैं. बता दें कि पशु का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए जई चारा बहुत बेहतर होता है. क्योंकि यह पौष्टिक होता है. इसमें विटामिन और खनिज भी अच्छी मात्रा में होता है. जई दुधारू पशुओं को स्वस्थ रखने और उसके दूध उत्पादन को बढ़ाने में मदद करता है. जई की फसल 120 से 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.

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