Fish Farming : तालाब में चूना डालने के क्या है फायदे, मछली की अच्छी ग्रोथ के लिए इस ट्रिक का करें इस्तेमाल

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन के साथ-साथ अब मछली पालन पर भी जोर दिया जा रहा है. बहुत से लोग मछली पालन करके अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं. जो कोई भी मछली पालन करता है तो कई बातों का ध्यान रखना होता है. खासतौर पर तालाब में मछली पालन के दौरान कुछ ऐसी जरूरी बातें हैं, जिनका ख्याल न रखा जाए तो मछली की ग्रोथ नहीं होती है. जिसका नुकसान मछली पलकों को होता है.

तालाब में चूने का प्रयोग एक बहुत ही अहम कड़ी है. एक्सपर्ट के मुताबिक यह पोषक तत्व कैल्शियम उपलब्ध कराने के साथ-साथ जल की अम्लीयता पर काबू रखता है. मछलियों के लिए हानिकारक चीजों को रोकता है. विभिन्न परजीवियों के प्रभाव से मछलियों को बचाता है और तालाब के घुलनशील ऑक्सीजन स्तर को भी ऊंचा करता है.

मिट्टी में बढ़ जाती है अम्लीयता: नाइट्रोजन उर्वरकों के लगातार प्रयोग से और जैविक पदार्थ से उत्पन्न अम्लों के कारण मिट्टी की अम्लीयता बढ़ जाती है. इसके चलते अम्लीयता की अवस्था में डाला गया फास्फोरस उर्वरक बेकार चला जाता है. उर्वरकों के सही उपयोग के लिए अम्लीयत के स्तर को कम करना जरूरी होता है. चूने की मात्रा मिट्टी की अम्लीयत के आधार पर कितनी रखनी है तय होती है.

गोबर का भी कर सकते हैं इस्तेमाल: अगर मिट्टी में 0.4 से 5.0 तक पीएच है तो मिट्टी अत्यधिक अम्लीय मानी जाएगी. तब 2000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर चूने का छिड़काव करना होगा. वहीं 5.0 से 6.0 पीएच होने पर मध्य अम्लीय मानी जाती है. तब 1200 किलोग्राम एक हेक्टेयर में चूने का छिड़काव होता है. जबकि 6.5 से 7.5 सामान्य के करीब माना जाता है. ऐसी कंडीशन में 250 किलो से 350 किलो किलोग्राम तक चूने का छिड़काव तालाब में किया जाना चाहिए. ज्यादा क्षरीय मिट्टी 8.5 से अधिक को गोबर की उचित मात्रा 20 से 30 टन प्रति हेक्टेयर के इस्तेमाल से जिप्सम के पांच—पांच टन के प्रति हेक्टेयर के प्रयोग से मत्स्य पालन के योग्य पीएच पर लाया जा सकता है.

तालाब में जहरीली गैस को ऐसे खत्म करें: तालाब के तल में ज्यादा मात्रा में कार्बनिक पदार्थ हो जाने पर अक्सर कई जहरीली गैसे पैदा हो जाती हैं. जो मछली के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती हैं. तालाब को सुखाकर तल की एक परत निकाल देनी चाहिए. 1 टन प्रति हेक्टेयर चुनाव डालकर 15 दिन के लिए तल को सूरज की रोशनी दिखानी चाहिए. यदि तालाब में पानी निकलना संभव न हो तो तल को समय-समय पर रेकिंग करते रहना चाहिए और 1 टन चूना प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष किस्तों में डालना चाहिए.

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