Milk Production : गर्मी में इस कारण घट जाता है दूध का उत्पादन, ऐसे पहचानकर करें पशुओं की देखभाल

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. इंसानों के साथ-साथ मवेशियों को भी गर्मी बुरी तरह से प्रभावित करती है. उच्च तापमान की वजह से पशुओं में तनाव देखने को मिलता है, जिससे मवेशियों में थर्मोरेगुलेटरी परिवर्तन आता है. ज्यादा गर्म ह्यूमिडिटी या गर्म शुष्क मौसम के दौरान, मवेशियों की पसीने और हांफने से गर्मी के कारण तनाव हो जाता है. गंभीर गर्मी के तनाव के कारण शरीर का तापमान बढ़ जाता है. पल्स रेट भी बढ़ सकती है, ब्लड प्रेशर भी बढ़ जाता है. ऐसे में पशु खाना कम खाते हैं और पानी ज्यादा पीने लग जाते हैं.

जब पर्यावरण का तापमान ऊपरी महत्वपूर्ण तापमान (विदेशी और संकर मवेशियों के लिए 24°-26°C और ज़ेबू मवेशियों के लिए 33°C और भैंसों के लिए 36°C) से अधिक हो जाता है, तो शरीर पसीने और हांफने के माध्यम से शरीर के मुख्य तापमान को बनाए रखने में में उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यह जब शरीर की बढ़ती गर्मी उत्पादन दर के साथ मिलकर पशु में हाइपरथर्मिया का कारण बनता है.

पशुओं को गर्मी में क्या दिक्कतें होती हैं: गर्मी के तनाव से जुड़े सभी परिवर्तनों से उत्पादकता में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी और यहां तक ​​कि जब सबसे ज्यादा गर्मी होती है तो पशुओं की कई बार मौत भी हो जाती है. जबकि दूसरी ओर भारत में हर साल गर्मी के तनाव के कारण दूध उत्पादन में भारी कमी आ रही है. जिससे भारी वित्तीय नुकसान हो रहा है. बताते चलें कि गर्मी का तनाव भी पशुओं के प्रजनन पर प्रभाव डालता है, जिससे गर्भधारण की दर कम हो जाती है और इसका सीधा नुकसान पशुपालकों को होता है.

भैंस को लगती है ज्यादा गर्मी: हालांकि मवेशियों की देशी नस्लों में गर्मी सहन करने की ताकत ज्यादा होती है, लेकिन संकर नस्ल और विदेशी नस्लें गर्मी के तनाव के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं. भैंसों में इसकी काली त्वचा के कारण इसका खतरा अधिक होता है, जो अधिक सूरज की रौशनी को सोखती है और कम पसीने वाली ग्रंथियां (मवेशियों की तुलना में केवल 1/6), एपापरेटिव गर्मी के नुकसान के माध्यम से गर्मी वेसेटज से समझौता करती हैं.

कैसे पता लगे कि पशु हैं तनाव में

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