Dairy : दूध कम होने पर भी कैसे पूरी होती है 100 फीसदी डिमांड

अगर थनैला पीड़ित पशुओं की पहचान नहीं हुई है तो दूध के जरिए भी इस बीमारी की पहचान की जा सकती है.

प्रतीकात्मक फोटो। livestockanimalnews

नई दिल्ली. गर्मी के दिनों में दही, लस्सी, पनीर, मावा, आइसक्रीम के साथ ही घरों और होटलों में चाय के लिए दूध की जरूरत बढ़ जाती है. जबकि सवाल ये उठता है कि जब गर्मियों के मौसम में गाय-भैंस दूध देना कम कर देती हैं तो फिर डिमांड कैसे पूरी होती है. वहीं हरा चारा भी पशुओं के जरूरत के मुताबिक नहीं होता है. बावजूद इसके डेयरी संचालक बढ़ी हुई डिमांड को पूरा कर देते है. आइए जानते हैं ये कैसे संभव होता है.

एक्सपोर्ट भी कई गुना बढ़ जाता है
जानकार बताते हैं कि 25-30 हजार लीटर और उससे ज्यादा का दूध कारोबार करने वाली कंपनियां हमेशा इमरजेंसी सिस्टम के तहत काम करती हैं. दरअसल, इसके तहत दूध की खपत भी हो जाती है और इमरजेंसी के लिए स्टॉक भी तैयार कर लिया जाता है. बता दें कि दूध डेयरी जितनी बड़ी होगी उसका इमरजेंसी स्टॉक उतना ही ज्यादा होता है. वहीं एपीडा के आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि 2021-22 में डेयरी प्रोडक्ट का एक्सपोर्ट भी कई गुना ज्यादा हो गया है. इस मामले में भारत से बड़ी मात्रा में डेयरी प्रोडक्ट खरीदने वालों में 10 प्रमुख देश हैं. ये वो देश हैं जिन्होंने इस साल कई गुना ज्यादा दूध, घी और मक्खन के साथ दूसरे प्रोडक्ट भारत से खरीदे हैं.

18 महीने का दूध-मक्खन रहते हैं सेफ
वीटा डेयरी, हरियाणा के जीएम, प्रोडक्शन चरन जीत सिंह का कहना है कि इमरजेंसी सिस्टम हर डेयरी में काम करता है. जिसके तहत डेयरी में डिमांड से ज्यादा आने वाले दूध को एक जगह स्टोर कर लिया जाता है. इन्हीं स्टोर किए गए दूध का मक्खन और मिल्क पाउडर बना लिया जाता है. डेयरियों में स्टोरेज क्वालिटी और कैपेसिटी अच्छी होने के चलते मक्खन और मिल्क पाउडर 18 महीने खाने योग्या होता है. वहीं मौजूदा दौर में इतने अच्छे-अच्छे चिलर प्लांट आ गए हैं कि मक्खन पर एक मक्खी बराबर भी दाग नहीं लगने देते हैं.

तब काम आता है इमरजेंसी सिस्टम
चरन जीत सिंह का कहना है कि अक्सर बाजार में दूध की डिमांड बढ़ जाती है. जब डिमांड ज्यादा हो जाती है या किसान-पशु पालकों की ओर से दूध कम आने लगता है इस वक्त में इमरजेंसी सिस्टम से शहरों को दूध सप्लाई कर दिया जाता है. गर्मियों में ये आम बात है कि पशु दूध कम देते हैं, लेकिन डिमांड तो कम नहीं होती है. वो बराबर बनी रहती है. ऐसे में इस डिमांड को भी इमरजेंसी सिस्टम से ही पूरा किया जाता है.

विपरीत स्थिति में इस तरह होती है दूध की सप्लाई
चरन जीत सिंह आगे कहते हैं कि जब भी ज्या‍दा दूध की जरूरत पड़ती है तो इमरजेंसी सिस्टम में से मक्खन और मिल्क पाउडर लेकर इसे मिक्स कर दिया जाता है. मिक्चर पहले की तरह से ही दूध बन जाता है. जब बड़े-बड़े आंदोलन के दौरान या फिर शहरों में कर्फ्यू लगा होता है और इस स्थिति में दूध की सप्लाई नहीं हो पाती है तो ऐसे में दूध को जमा कर इमरजेंसी सिस्टम में मक्खन और मिल्क पाउर बना लिया जाता है. इस तरह की स्थिति में में डेयरी तक दूध नहीं पहुंचता लेकिन बावजूद इसके डेयरी के पास दूध उपलब्ध होता है.

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