Moranga: आदिवासियों को बताया सहजन का महत्व, फसल उगाकर कमा सकते हैं लाखों रुपये

ICAR-Directorate of Poultry Research, Hyderabad) moranga, livestocanimalnews

पोल्ट्री अनुसंधान निदेशालय, तेलंगाना के निदेशक, डॉ. आरएन चटर्जी आदिवासी महिलाओं को जानकारी देते हुए.

नई दिल्ली. मोरंगा को जानते हो यानी सहजन नहीं ! तो हम आपको बता देते हैं और मोरंगा होता क्या है और इसके फायदे क्या-क्या हैं. सरकार इसे उगाने के लिए क्यों जोर दे रही है. ये पौधा पोषक तत्वों से भरपूर होता है. सरकार किसानों से अपील कर रही है कि इस फसल को उगाकर बेहतर लाभ कमा सकते हैं. यही वजह है कि सरकार आदिवासियों से इस फसल को उगवाकर मुख्यधारा में लाना चाहती है. इसका नतीजा भी सुखद सामने आ रहा है.

मोरिंगा से मिलता है उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन फीड
आईसीआर-पोल्ट्री अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद ने तेलंगाना के गोद लिए गए आदिवासी गांव बाओजी थांडा में “बैकयार्ड पोल्ट्री के साथ एकीकृत मोरिंगा खेती” पर एक इकाई को सफलतापूर्वक स्थापित किया है.पोल्ट्री अनुसंधान निदेशालय, तेलंगाना के निदेशक, डॉ. आर.एन. चटर्जी ने कृषि भूमि प्रबंधन के बेहतर दृष्टिकोण के रूप में एकीकृत खेती के लाभों पर जोर दिया. उन्होंने आगे कहा कि मोरिंगा उगाने से उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन फीड मिलता है जो चिकन उत्पादन की लागत को कम करने में मदद करता है.

गिरी हुई मोरिंगा की पत्तियों को खिलाया गया
निदेशालय की ओर से करीब 100 ग्रामप्रिया पक्षी, एक ग्रामीण लेयर चिकन किस्म आदिवासियों को प्रदान की गईं और इस इकाई में एक मुफ्त-स्कैवेंजिंग प्रणाली के तहत पाला गया था, जिसमें गिरी हुई मोरिंगा की पत्तियां, पौधों की सामग्री, कीड़े, कीड़े, चींटियों, मक्खियों वगैरह जैसे संसाधनों का उपयोग किया गया था.

क्या है मोरंगा
मोरंगा यानी सहजन में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसलिए इसका उपयोग कई तरह से किया जाता है. अगर आधुनिक तरीके से मोरंगा की खेती को किया जाए तो किसानों को काफी अच्छा लाभ प्राप्त होता है. सहजन की सबसे खास बात ये है कि इसकी खेती बंजर जमीन में भी हो सकती है. इसके अलावा इसकी खेती अन्य फसलों के साथ भी आसानी से की खेती की जा सकती है.

ये हैं मोरंगा की किस्म

रोहित-1: मोरंगा की इस वैरायटी की सबसे अच्छी खासियत ये है कि इसे उगाने के 4-6 महीने के बाद फल देना शुरू कर देती है. इससे करीब 10 साल तक फल मिलता है. इस खेती से किसान एक साल में आसानी से दो फसल प्राप्त कर सकते हैं.

कोयंबटूर-2: मोरंगा की इस नस्ल की फली का रंग गहरा हरा और बेहद जायकेदार होता है. पौधा करीब तीन से चार साल तक उपज देता है.

पीएमके-1: पीकेएम-1 किस्म, मोरंगा यानी सहजन की एक बहुत उन्नत किस्म मानी जाती है. अन्य किस्मों की तुलना में इसकी फली का स्वाद काफी बेहतर होता है.पौधों से लगातार चार साल तक फली मिलती रहती है. इसके पेड़ में 90 से 100 दिनों बाद फूल आना शुरू हो जाता है. इस पेड़ से करीब चार साल तक फली मिलती रहती है. इसकी खेती करना किसानों के लिए बेहद फायदेमंद होता है.

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