Nattive Breed Of Rajasthan: मेवाती ऊंट की खास बातें

मेवाती ऊंट भी वजन ढोने वाली नस्ल है.

मेवाती ऊंट.

नई दिल्ली. ऊंटों को पालने के कई फायदे हैं. जबकि राजस्थान में ऊंट पालन एक महत्वपूर्ण काम है. जिसको करके किसान अपनी इनकम को बढ़ा सकते हैं. पश्चिमी राजस्थान की अर्थव्यवस्था में ऊंटों का विशेष स्थान रहा है. राजस्थान सरकार ऊंट पालन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही है. ऊंट पालने के कई फायदे हैं. उनके दूध की मांग विदेशों में बढ़ रही है. इसका दूध सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है. इसका इस्तेमाल खेती किसानी में भी कर सकते हैं. वहीं ये पर्यटन को भी बढ़ावा देने के भी काम में आता है. रेगिस्तानी इलाकों में भार उठाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. आज बात कर रहे हैं मेवाती नस्ल के ऊंट के बारे में। राजस्थान और हरियाणा के साथ ही ये नस्ल यूपी में भी पाई जाती है.

ऊंटों का प्रयोग वैसे तो माल ढोने के लिए किया जाता है. लेकिन राजस्थान में ऊंट दूध के लिए जाने जाते हैं. ऊंट रेगिस्तान का जहाज भी कहे जाते हैं. आइये जानते हैं मेवाती ऊंटों के बारे में.

मेवाती की पहचान: मेवाती ऊंट भी वजन ढोने वाली नस्ल है. ये सवारी और कृषि कार्यों में भी उपयोग किए जाते हैं. कोसी या मेहवती के नाम से भी मेवाती ऊंट को जाना जाता है. यह हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में पाए जाते हैं. मेवाती ऊंट भी बिना पानी पिए लंबे समय तक रहने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं और शुष्क जलवायु में आसानी से रह सकते हैं. ऊंट के दूध की बात करें तो वैसे तो ये बहुत कम दूध देते हैं, लेकिन इनके दूध की मांग बहुत होती है.

दूध उत्पादन के लिए करें ये काम: दूध उत्पादन के लिए लगभग 6-8 लीटर पानी प्रति लीटर दूध की आवश्यकता रहती है. पीने के पानी को साफ और स्वच्छ स्थान में भंडारण करें. ताकि बीमारी फैलाने से बचाव किया जा सके. खारे पानी में सोडियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम, और फ्लोराइड या नाइट्रेट जैसे तत्त्व हो सकते हैं, जो आवश्यकता से अधिक होने पर पशु के लिए हानिकारक हो सकते हैं. दूषित पानी के कारण पशुओं के दूध उत्पादन क्षमता पर विपरीत प्रभाव हो सकता है. महीने में दो बार जल भंडारण स्थान को खाली कर उसमें चूना से पुताई कर दें.

दूध होता है बेहद खास: ऊंटनी का दूध लम्बे समय तक (8-9 घंटे तक) खराब नहीं होता. जबकि अन्य पशुओं का दूध बहुत जल्दी खराब हो जाता है. ही साथ ही इसका जीवनकाल उष्ट्र लेक्टीपरऑक्सीडेज प्रणाली की सक्रियता द्वारा (37 डिग्री सेल्सियस पर 18-20 घंटे तक) बढ़ाया जा सकता है.

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