नई दिल्ली. मुर्गी पालन वैसे तो अच्छा मुनाफा देता है. आजकल पोल्ट्री का बिजनेस 12 महीने का हो गया है. अंडे और मीट के लिए पोल्ट्री अच्छा विकल्प है. लेकिन पोल्ट्री में अगर बीमारियां लग जाएं तो मुनाफा की जगह नुकसान उठाना पड़ सकता है. वैसे तो मुर्गियों में कई तरह की बीमारियां होती हैं. लेकिन फाउल टाइफाइड एक खतरनाक बीमारी है. बढ़ती और वयस्क मुर्गियों का एक संक्रामक रोग है. फाउल टाइफाइड बीमारी मुर्गियों में साल्मोनेला गैलिनारम, साल्मोनेला में एक नेगेटिव बैक्टीरिया रॉड के कारण होता है. फाउल टाइफाइड आमतौर पर मुर्गियों में फीड और पानी के जरिए सांस लेने वाले रास्ते से एंट्री करता है. मुर्गियों के शरीर में अन्य स्थानों जैसे जख्मों के जरिए भी ये बीमारी मुर्गियों में प्रवेश करके उन्हें नुकसान पहुंचाती है.
फाउल टाइफाइड के बारे में पोल्ट्री एक्सपर्ट कहते हैं कि ये बीमारी मुर्गी पालन को बहुत नुकसान पहुंचाने वाली बीमारी है. क्योंकि इस बीमारी में मृत्युदर बहुत ज्यादा देखी जाती है. इसके चलते एक झटके में ही पोल्ट्री फार्मर्स को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है. फाउल टाइफाइड के शुरुआती लक्षणों में भूख न लगना, दस्त, डीहाइड्रेशन, कमजोरी शामिल है. इसके बाद अगर वक्त पर मुर्गियों का इलाज न हुआ तो उनकी मौत होने लगती है.
लिवर को हो जाता है नुकसानः फाउल टाइफाइड वाले पक्षियों में आमतौर पर सेप्टिसीमिया के सामान्य लक्षण होते हैं और उनका लिवर अक्सर तांबे जैसा कांस्य रंग की तुलना में गहरा, बड़ा, भुरभुरा होता है. यह कांस्य मलिनकिरण केवल लिवर के हवा के संपर्क में आने के बाद ही विकसित हो सकता है. बीमारी में चिपचिपी, पित्त, चिपचिपी आंतों की सामग्री के साथ कैटरल एंटरटाइटिस आम है. बोन मौरे आमतौर पर गहरे भूरे रंग की होती है. अधिक पुराने मामलों में मुर्गियों के शव अत्यधिक खून से सने हो सकते हैं. लंबे समय से प्रभावित पक्षियों के दिल, लीवर, आंतों और अमाशय बेहद ही प्रभावित होते हैं.
बीमारी का इलाजः पोल्ट्री में इस्तेमाल किए जाने वाले सीरोलॉजिकल टेस्टों में रैपिड होल ब्लड प्लेट एग्लूटिनेशन टेस्ट, रैपिड सीरम एग्लूटिनेशन टेस्ट और एलिसा शामिल हैं. सीरोलॉजी को झुंड परीक्षण के रूप में या नियंत्रण कार्यक्रमों में लंबे समय से संक्रमित पक्षियों की पहचान करने में मदद करने के लिए नियोजित किया जा सकता है. इस बीमारी से प्रभावित पक्षियों से एस गैलिनारम को अलग करके फाउल टाइफाइड का निदान किया जा सकता है. पीसीआर टेस्ट का इस्तेमाल सीधे तिल्ली, लिवर और अंडाशय में सगैलिनरम की पहचान करने के लिए किया जा सकता है.