नई दिल्ली. जिस तरह से पशुपालन में पशुओं को बीमारी से बचाना पड़ता है. ठीक उसी तरह से मछलियों को भी बीमारी से बचाने की जरूरत होती है. क्योंकि मछलियों को बीमारी लग गई तो फिर मुश्किल खड़ी हो जाएगी और इस कारोबार से मुनाफे के बजाय घाटा होने लगेगा. क्योंकि मछलियां जब बीमार पड़ती हैं तो बीमारी पूरे तालाब में तेजी से फैलती है और फिर प्रोडक्शन पर तो असर पड़ता ही है साथ ही मछलियों की मौत हो जाने के कारण मछली पालक को बड़ा नुकसान होता है.
मछलियों को बीमारी से बचाने के लिए पहले से कई उपाय किए जा सकते हैं. इसके अलावा अगर मछलियां बीमार पड़ जाएं तो वक्त रहते उनका इलाज भी किया जा सकता है. इस आर्टिकल में हम आपको नीचे 20 प्वाइंट्स में यही बताने जा रहे हैं कि किस तरह से मछलियों को बीमार होने से बचाया जा सकता है और अगर वो बीमार हैं तो उनका इलाज कैसे किया जा सकता है. आइए गौर से पढ़ते हैं.
-मत्स्य पालन वाले तालाबों की प्रत्येक दो वर्षों में कम से कम 15 दिनों तक खाली करके सुखाना चाहिए. इससे तालाब की तली में मौजूद सभी संक्रामण, फूफेंद, बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं एवं तालाब रोग मुक्त हो जाता है.
-मत्स्य बीज संचय करने से एक हफ्ता पहले तालाब में बिना बुझे चूने का छिडकाव करना चाहिए. ताकि तालाब में किसी प्रकार का रोग न हो.
-चूने का छिड़काव 200-250 कि० ग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से वर्ष के प्रत्येक माह में किया जाना चाहिए.
-मछलियों में प्रायः रोग अक्टूबर से फरवरी तक लगते है क्योंकि मछली शीतरक्त धारी प्राणी होने के कारण अत्यधिक ठंडक होने पर उसकी जैविक क्रियायें शिथिल पड जाती है.
-मछलियों की जैविक क्रियाओं शिथिल होने पर ही उस पर रोग लगने लगते है जिस कारण अक्टूबर से फरवरी तक तालाब में चूने का छिड़काव बहुत ही जरूी है.
-तालाब में जरूरत से अधिक मत्स्य बीज का संचय नहीं किया जाना चाहिए.
-तालाब में अधिक गन्दगी नहीं करनी चाहिए.
-मछलियों की मात्रा एवं भार के अनुसार तालाब में संतुलित कृत्रिम भोजन अवश्य देना चाहिए.
-यदि तालाब के पानी का रंग गन्दा हो गया हो तो पहले उसमें चूने का छिड़काव करके उसमें पेस्टिंग करनी चाहिए ताकि प्राकृतिक भोजन की कमी न हों.
-यदि तालाब में मछलियां इधर-उधर भाग रही हैं तो तुरंत 10 प्रतिशत गैमैक्सीन (गन्धीभार) पाउडर तथा चूने का घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए.
-रोग ग्रस्त तालाब में जाल नहीं चलाना चाहिए. पहले तालाब में रोग का उपचार किया जाए उसके एक सप्ताह बाद तालाब में जाल चलाना चाहिए.
-गैमैक्सीन एवं चूने का छिड़काव करने के उपरांत तालाब में पोटेशियम परमैगनेट के घोल का छिड़काव करना चाहिए.
-चूना मत्स्य पालन में बहुत ही उपयोगी होता है जिस कारण चूने का प्रयोग हमेशा करने से तालाब रोग मुक्त होता है. इसके अलावा चूना तालाब में निम्नलिखित क्रियाओं को भी नियंत्रित रखता है. तालाब के पीएच को नियंत्रित करता है. तालाब की गन्दगी को साफ करता है. आक्सीजन की मात्रा को बढ़ाता है. तालाब में अम्लीय / क्षारीय माध्यम को नियंत्रित करता है.
-तालाब में उत्पन्न होने वाले जीवाणु/फफूंद एवं बैक्टीरिया को मारता है. तालाब में आकस्मिक बदलाव या रोगों के लक्षण दिखाई देने पर किसी जानकार/मत्स्य वैज्ञानिक को बुलाकर उसकी सलाह लेते हुए तुरंत उपचार करना चाहिए.
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