नई दिल्ली. बकरीद एक ऐसा मौका होता है जब बकरों का दाम बहुत ही अच्छा मिलता है. पशु पालकों को अच्छा खास मुनाफा भी मिलता है. जहां एक ओर बकरीद के मौके पर कपड़ों समेत अन्य चीजों की भी खरीदारी होती है तो वहीं बकरों की खरीदारी भी होती है. बकरी—बकरों को कई तरह से पाल सकते हैं लेकिन अगर पशु पालक ये चाहते हैं उन्हें ज्यादा मुनाफा हो तो एक खास तरीके से बकरीद पर बेचने के लिए बकरों का पालन करना चाहिए. ऐसा करने भर से ही पशु पालकों को मोटा मुनाफा हो सकता है. जानकारी के मुताबिक पशु पालकों के लिए पूरे साल में ये एक खास मौका आता है, जब उन्हें आम दिनों में लगने वाले बाजार की अपेक्षा अच्छा दाम मिलता है. क्योंकि बकरीद यदि बकरा पांच शर्तों पर खरा उतरता है तो मुंह मांगा दाम मिल जाता है. वहीं अगर पशु पालक इन पांच शर्तों को पूरा करते हैं तो फिर उसे बकरे के अच्छे मिलने से कोई नहीं रोक सकता है.
देश के स्थानीय बाजारों में, खासतौर पर कोलकाता में दुर्गा पूजा और बकरीद के मौके पर पूरे देश में बकरों की मांग बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. वहीं बकरीद के मौके पर कुर्बानी के लिए बकरीद के कई दिन पहले ही सऊदी अरब बकरों को एक्सपोर्ट किया जाता है. जानकार कहते हैं कि मीट के लिए अच्छी मानें जाने वाली नस्ल के बकरों को अच्छे तरीके से पाला जाए तो वो मुनाफा अच्छा देते हैं. किसी भी नस्ल का बकरा एक साल में बाजार की डिमांड पूरी करने के लिए तैयार हो जाता है.
इस तरह बकरों को पालें
उत्तर प्रदेश के मथुरा के बकरी पालक फहीम खान कहते हैं कि आमतौर पर लोग दो से तीन महीने का बकरी का बच्चा, लाकर इसे पालते हैं. उस वक्त बकरी के बच्चे की कीमत 4.5 से 5 हजार रुपये होती है. बकरीद पर तैयार करने के लिए इन बच्चों को 9 से 10 महीने तक पाला जाता है. इस दौरान एक बकरे की दवा और खिलाई पिलाई पर 7 से 8 हजार रुपये लागत आती है. इन दोनों खर्च को जोड़ दिया जाए तो एक साल बाद बकरी का बच्चा 12 से 13 हजार रुपये में तैयार होता है. वहीं अगर बकरी पालकर उससे बच्चे लें तो एक साल का बकरा पशु पालकों को सस्ता पड़ता है. वहीं बकरियों की कई ऐसी नस्ल है जो जो दो साल में तीन बार तक 4 से 6 बच्चे दे देती है. इन तीन महीने तक तो बच्चा बकरी का दूध पीता है. इस दौरान सिर्फ एक बकरी को चारा खिलाने का खर्च ही आता है. हालांकि उस बकरी पर दो बच्चे पल भी जाते हैं. इस तरह से दो बच्चों को खरीदने के खर्च करीब 10 हजार रुपये बचाए जा सकते हैं. इससे फायदा ये होगा कि बच्चा तीन महीने तक लगातर बकरी का दूध पिएगा, जिससे उसकी ग्रोथ अच्छी होगी और मीट भी क्वालिटी भी अच्छी होगी.
मीट के लिए कौन सी अच्छी है नस्ल
एक्सपर्ट की मानें तो देश में बकरे-बकरियों की करीब 37 नस्ल पाई जाती है लेकिन मीट के लिए कुछ खास नस्ल के बकरों की डिमांड बहुत ज्यादा होती है. ये डिमांड किसी एक मौके पर नहीं बल्कि 12 महीने रहती है. जिसमें बंगाल का ब्लैक बंगाल, पंजाब का बीटल बकरा लोगों की पहली पसंद होता है. अन्य नस्लें भी पसंद की जाती हैं.
बरबरा नस्ल के बकरे की हाइट दो से ढाई फुट तक होती है. इसकी हाइट ज्यादा न होने से की वजह से ये खूब मोटे ताजे दिखाई देते हैं. ये बकरे एक साल की उम्र में कुर्बानी के लिए तैयार माने जाते हैं. इइसके कान छोटे और खड़े होते हैं. वहीं ये आगरा, इटावा, फिरोजाबाद, मथुरा और कानपुर में मिलता है. इस बकरे के रेट कम से कम 10 हजार रुपये से शुरु होता है और रविवार को ही आगरा के बाजार में इसी नस्ल के तीन बकरे 1.60 लाख रुपये में बिक जाता है.
वहीं सिरोही नस्ल का बकरा ब्राउन और ब्लैक कलर में पाया जाता है. इस नस्ल के बकरे सफेद रंग के धब्बे होते हैं. इस नस्ल का बकरा दिखने में ऊंचा होता है. इसकी नस्ल राजस्थान में ही पाई जाती है. ये बकरा बाजार में कम से कम 12 से 15 हजार रुपये में मिल जाता है. वहीं तोतापरी नस्ल का बकरा पतला और लम्बा होता है. इसकी ऊंचाई कम से कम 3.5 से 4 फुट तक हो जाती है. हालांकि ये बाजार में बिकने के लिए तैयार होने में ये कम से कम 3 साल लेता है. इस नस्ल के बकरे हरियाणा के मेवात और राजस्थान के भरतपुर जिले में पाए जाते हैं. इसकी बिक्री 12 से 13 हजार रुपये से शुरू होती है.
जमनापारी- जमनापारी नस्ल यूपी के इटावा में पाई है. ये लम्बा होता है और इसके कान मीडियम साइज होते हैं. ये मोटा और भारी देखने में होता है. इसके कान पर काला धब्बा जरूर होता है. ये 12 से 20 हजार रुपये में आसानी से मिल जाता है. ये बकरों की बड़ी मंडी- जसवंत नगर (यूपी), कालपी (मध्य प्रदेश), महुआ, अलवर (राजस्थान) और मेवात (हरियाणा), में आसानी से मिल जाता है.
Leave a comment