Sheep: भारतीय रिसर्च टीम ने जीन में बदलाव कर भेड़ का कराया जन्म, शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी में हुआ ये कारनामा

live stock animal news. Bakrid, muzaffarnagari sheep, Goat Breed, Goat Rearing, Sirohi,

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. पशुपालन को लेकर भारत में कई काम हो रहे हैं. हर दिन रिसर्चर इसपर कुछ न कुछ रिसर्च करके पशुपालन को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं. सरकार की भी यही मंशा है कि पशुपालन में रिसर्च को बढ़ावा दिया जाए ताकि पशुपालन को बढ़ावा मिल सके और इसका फायदा पशुपालकों को मिल सके. रिसर्च के क्षेत्र में शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक बड़ा कारनामा अंजाम दिया है. जिसके जरिए आने वाले भविष्य में पशुपालन क्षेत्र में एक नया अयाम लिखा जा सकेगा.

असल में भारत में पहली बार जीन में बदलाव कर भेड़ का जन्म हुआ है और यह कारनामा वैज्ञानिक की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है. शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने ये सफलता हासिल की है.

वैश्विक स्तर पर दर्ज कराई मौजूदगी
सीआरआईएसपी आर कैस 9 नाम की आधुनिक तकनीक से भेड़ के शरीर में मौजूद एक खास जीन को बदला गया. जिससे इसकी मांसपेशियां सामान्य से करीब 30 प्रतिशत ज्यादा विकसित होंगी. इस काम को अंजाम देने में वैज्ञानिकों की टीम को करीब चार साल का समय लगा गया है. टीम का नेतृत्व विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा संकाय के डीन डॉ. रियाज अहमद शाह ने किया. वहीं इससे पहले डॉ. शाह की टीम ने 2012 में भारत की पहली क्लोन की गई पश्मीना बकरी ‘नूरी’ का भी सफलतापूर्वक जन्म कराया था. यह उपलब्धि भारत में कुछ ही दिनों पहले जारी पहली जीन-संपादित धान की किस्म के बाद सामने आई है. भारत अब जीनोमिक विज्ञान और तकनीकी नवाचार के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है.

पशुओं की नस्लें सुधरेंगी
इस उपलब्धि पर कुलपति डॉ. नजीर अहमद गनई ने इसे पशु आनुवंशिकी के क्षेत्र में एक नई सुबह बताया है. उन्होंने कहा, यह भेड़ का जन्म नहीं है, बल्कि यह भारत में जीन में बदलाव बदलाव की तकनीक के युग की शुरुआत है, जिससे बेहतर नस्ल के जानवरों को तैयार करना आसान होगा. डॉ. शाह ने बताया कि भेड़ में मायोस्टेटिन नाम के जीन को निष्क्रिय किया है, जो मांसपेशियों की बढ़त को नियंत्रित करता है. इसके बदलने से मांसपेशियां तेजी से बढ़ती हैं। यह प्रक्रिया पहले अमेरिका, चीन जैसे देशों में अपनाई जा गई है. डॉ. शाह ने आगे बताया कि बताया कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से विदेशी डीएनए से मुक्त है, जिससे इसे पारंपरिक ट्रांसजेनिक तकनीकों से अलग माना जा रहा है. इससे इसे भारत की नवीन जैव-नीति के तहत मंजूरी मिलने की संभावना ज्यादा है.

Exit mobile version