नई दिल्ली. अभी तक मुर्गी के अंडों के लिए है हैचरी बनाई जाती थी लेकिन अब कछुओं के अंडों के लिए भी हेचरी बनाकर अंडों को संरक्षित किया जाएगा. इसके लिए वन विभाग डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ मंडल के कासगंज जिले में गंगा किनारे टापुओं पर फरवरी में कछुओं की हेचरी बनाकर उसमें अंडों को संरक्षित करेगा. इन हेचरी से निकलने वाले कछुओं के बच्चे अलीगढ़ के मकुंदपुर चेतना केंद्र की नर्सरी में रखे जाएंगे. नर्सरी में कछुओं के बड़े हो जाने पर उन्हें कासगंज की गंगा में एक निश्चित स्थान चिह्नित कर छोड़ दिया जाएगा.
टापुओं पर ही क्यों बनाई जाएगी हेचरी
कछुओं के अंडों को संरक्षित करने के लिए वन विभाग डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा काम कर रहा है. इसके लिए हेचरी बनाकर अंडों को संरक्षित करने की योजना भी है, जिस पर काम तेजी से शुरू कर दिया गया है. इसके लिए यूपी सरकार ने कासगंज में गंगा क्षेत्र को चुना है. गंगा किनारे टापुओं पर कछुओं की हेचरी बनाकर उसमें अंडों को संरक्षित करेगा.
नर्सरी में बड़ा करने के बाद फिर से गंगा में छोड़ा जाएगा
इस बारे में अलीगढ़ के डीएफओ दिवाकर वशिष्ठ ने बताया कि कासगंज में कछुओं की हेचरी बनाने के लिए स्थानों का चयन पहले ही किया जा चुका है. कासगंज जिले के सोरों के लहरा घाट से लेकर कादरगंज तक गंगा किनारे टापुओं पर अंडों को सुरक्षित रखने के लिए हेचरी बनाई जाएंगी. हेचरी से निकलने वाले कछुओं के बच्चों को अलीगढ़ में मकुंदपुर चेतना केंद्र की नर्सरी में रखे जाएंगे. जब ये कछुए थोड़े बड़े हो जाएंगे तो उन्हें इसी साल दिसंबर या अगले साल की जनवरी गंगा किनारे स्थित स्थान को चिह्नित करके छोड़ दिया जाएगा. गंगा किनारे होने वाली तरबूज की फसलों की पालेज में कछुए अंडा देते हैं. इन अंडों को ही एकत्र कर हेचरी में रखा जाएगा.
क्या होती है कछुओं की हेचरी
डीएफओ दिवाकर वशिष्ठ ने बताया कि कछुओं के अंडों के गड्ढों या पालेज से निकालकर हेचरी में रखा जाता है. हेचरी की डिजायन इस तरह बनाई जाती है कि उसमें पर्याप्त गर्मी रहे, ताकि अंडों से बच्चे बाहर आ सकें. अंडों के फूटने के बाद बाहर आने वाले बच्चों को नर्सरी में रखा जाता है. बच्चों को शाकाहारी भोजन दिया जाता है. कछुओं के बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो उन्हें गंगा में छोड़ दिया जाता है.