Animal Care Tips: दुधारू पशुओं में क्या है प्रसूति ज्वर, जानिए इसके लक्षण और उपचार

दुधारू गाय व भैंस के ब्याने व उसके बाद सतर्क रहने की आवश्यकता है.

साहीवाल गाय की प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली. अगर पशुओं को बीमार होने से बचा लिया जाए तो फिर पशुपालन में होने वाले बड़े नुकसान से बचा जा सकता है. अच्छी नस्ल और अच्छी फसल दोनों की पशुपालकों को मुनाफा देती है. ठीक ऐसा ही पशुपालन में होता है. बीमारी चाहे इंसानों में हो या फिर जानवरों में दिक्कतें सभी को होती हैं. बीमारी के कारण शरीर सही ढंग से काम नहीं करता है. जिस तरह से सामान्य दिनों में करती है. इंसानों की तरह ही पशुओं को भी ढेर सारी बीमारियां होती हैं. पशुओं को होने वाली इन बीमारियों के कारण उन्हें ​बेहद ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसके चलते प्रोडक्शन पर असर पड़ता है और बीमार पशु कमजोर भी होने लगता है.
दुधारू गाय व भैंस के ब्याने व उसके बाद सतर्क रहने की आवश्यकता है. क्योंकि प्रसूति ज्वर सामान्य तौर पर गायों व भैंसों में ब्याने के दो दिन पहले से लेकर तीन दिन बाद तक होता है. कुछ पशुओं में यह ब्याने के 15 दिन तक भी हो सकता है. पशु एक्सपर्ट ने इसके लक्षण, उपचार व बचाव पर कार्य किया। उन्होंने इससे बचाव की जानकारी दी है.

प्रसूति ज्वर के लक्षण प्रारंभिक अवस्था : रोगी पशु अति संवेदनशील और अशांत दिखाई देता है. पशु दुर्बल हो जाता है और चलने में लड़खड़ाने लगता है. पशु खाना-पीना व जुगाली करना बंद कर देता है. मांसपेशियों में कमजोरी के कारण शरीर में कंपन होने लगती है और पशु बार-बार सिर हिलाने व रंभाने लगता है. रोग के लक्षण दिखने पर

इस तरह से करें पशुओं का उपचार : इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही तुरंत रोगी पशु को कैल्शियम बोरेग्लुकोट दवा की 450 मिली लीटर की एक बोतल रक्त की नाड़ी के रास्ते चढ़ा देनी चाहिए. यह दवा धीरे-धीरे 10-20 बूंदें प्रति मिनट की दर से लगभग 20 मिनट में चढ़ानी चाहिए. यदि पशु दवा की खुराक देने के 8-12 घंटे के भीतर उठ कर खुद खड़ा नहीं होता तो इसी दवा की एक और खुराक देनी चाहिए.

मैग्नीशियम की हो जाती है कमी: इस रोग में पशु के शरीर में मैग्नीशियम की भी कमी हो जाती है. इसलिए कैल्शियम-मैग्निशियम बोरेग्लुकोनेट के मिश्रण की दवा देने से अधिक लाभ होता है. सामान्यतः लगभग 75 प्रतिशत रोगी पशु उपचार के दो घंटे के अंदर ठीक होकर खड़े हो जाते हैं. उनमें से भी लगभग 25 प्रतिशत, पशुओं को यह समस्या दोबारा हो सकती है. इसलिए एक बार फिर इसी उपचार की आवश्यकता पड़ सकती है. उपचार के 24 घंटे तक रोगी पशु का दूध नहीं निकालना चाहिए.

इस बीमारी से पशुओं को ऐसे बचाएं: इस रोग से बचाव के लिए पशु को ब्यांतकाल में संतुलित आहार देना चाहिए. संतुलित आहार के लिए दाना-मिश्रण, हरा चारा व सूखा चारा उचित अनुपात में देना चाहिए. ध्यान रहे कि दाना मिश्रण में 2 प्रतिशत उच्च गुणवत्ता का खनिज लवण व एक प्रतिशत साधारण नमक अवश्य शामिल हो. यदि दाना मिश्रण में खनिज लवण व साधारण नमक नहीं मिलाया गया है तो पशु को 50 ग्राम खनिज लवण व 25 ग्राम साधारण नमक प्रतिदिन अवश्य दें. लेकिन ब्याने से 1 महीने पहले खनिज मिश्रण की मात्रा 50 ग्राम प्रतिदिन से घटा कर 30 गाम प्रतिदिन कर दें. ऐसा करने से ब्याने के बाद कैल्शियम की बढ़ी हुई आवश्यकता को पूरा करने के लिए हड्डियों से कैल्शियम अवशोषित करने की प्रक्रिया व्याने से पहले ही अम्ल में आ जाती है, जिससे व्याने के बाद पशु के रक्त में कैल्शियम का स्तर सामान्य बना रहता है. व्याने के समय के आसपास पशु पर तीन से चार दिन तक नजर रखें. रोग के लक्षण दिखाई देते ही तत्काल उपचार कराएं.

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