नई दिल्ली. डेयरी फार्मिंग के काम में हरा चारा जितना ज्यादा अहम होता है. उतना ही ज्यादा अहम यह भी है कि हरे चारे की बुवाई करने में फसल चक्र का इस्तेमाल किया जाए. यदि फसल चक्र का सही से पालन किया जाएगा तो फिर इससे अच्छी उपज मिलेगी और पशुओं के लिए चारे की कमी नहीं होगी. बता दें कि फसल चक्र एक ऐसा तरीका है. जिसमें जमीन पर विभिन्न तरह की फसलों को एक खास क्रम में और निश्चित समय के लिए बारी-बारी से उगाया जाता है.
यदि आप भी जानना चाहते हैं की फसल चक्र के मुताबिक कब किस चारे की बुवाई करना है तो यही जानकारी हम यहां आपको देने जा रहे हैं.
यहां पढ़ें कब किस फसल की करें बुवाई
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के एक्सपर्ट का कहना है कि फसल चक्र का पालन करने से न सिर्फ मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि पोषक तत्व का संतुलन भी बना रहता है.
जबकि कीट वह खरपतवारों के दबाव को भी इससे काम किया जा सकता है. मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के लिए भी फसल चक्र बेहद ही अहम है.
अगर आप चारे की बुवाई में फसल चक्र का पालन करते हैं तो इससे न केवल जमीन की उर्वरता बढ़ती है. बल्कि इससे हरे चारे की उपलब्धता को पूरे साल के लिए सुरक्षित किया जा सकता है.
संकर नेपियर बाजार लोबिया बरसीम और सरसों की बुवाई करनी चाहिए. इससे आपको साल में 285 टन प्रति हेक्टेयर चार मिलेगा.
अगर मक्का, लोबिया, मक्का, फिर लोबिया, मक्का और लोबिया की बुवाई करते हैं तो इससे साल में 165 टन हरा चारा मिलेगा.
इसी तरीके से मक्का, लोबिया, राइस बिन, बरसीम और सरसों की बुवाई करते हैं तो 110 टन प्रति हेक्टेयर हर साल चार मिलेगा.
जबकि संकर नेपियर बाजरा, ग्वार और रिजका की बारी-बारी बुवाई करते हैं तो 250 टन प्रति हेक्टेयर 1 साल में हरा चारा मिलेगा.
ज्वार, लोबिया, मक्का, लोबिया, मक्का और लोबिया की बुवाई करने पर 110 टन हरा चारा उपलब्ध होगा.
इसी तरीके से एमपी चरी, लोबिया, बरसीम, सरसों, ज्वार और लोबिया बोते हैं तो 168 टन हररा चारा एक हेक्टेयर में हर साल मिलेगा.
निष्कर्ष
इस तरह से हर पशुओं के लिए हरे चारे की कमी नहीं होगी और इसका असर दूध उत्पादन पर पड़ेगा. पशु को जब सही से चारा मिलेगा तो उसका दूध उत्पादन बढ़ेगा.