नई दिल्ली. भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) की ओर से देश के चार प्रमुख कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी) क्षेत्रों, (पुणे जोन-8), (जबलपुर जोन-9), (हैदराबाद जोन-10) एवं (बेंगलुरु जोन-11) से संबंधित 12 राज्यों के कृषि विज्ञान केंद्रों के साथ तीसरी राष्ट्रीय इंटरफेस बैठक का आयोजन हाइब्रिड मोड पर किया गया. इस बैठक में पशुपालन में आ रही तमाम रुकावटों और उसके समाधान पर विस्ताार से चर्चा की गई. इस बेठक में पीएम मोदी (PM Modi) के “विकसित भारत 2047” के दृष्टिकोण के तहत वरिष्ठ अधिकारियों, वैज्ञानिकों और क्षेत्रीय विशेषज्ञों सहित कुल 271 प्रतिभागियों ने अपनी अहम राय रखी.
बैठक में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (कृषि प्रसार) डॉ. राजबीर सिंह, ने कृषि विज्ञान केन्द्रों एवं अटारी की राष्ट्र निर्माण में भूमिका को रेखांकित करते हुए आईवीआरआई (IVRI) द्वारा साझा मंच उपलब्ध कराने के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने टेक्नोलॉजी मूल्यांकन और प्रदर्शन में केवीके की केंद्रीय भूमिका का उल्लेख करते हुए ऐसी बैठकें नियमित रूप से आयोजित करने पर जोर दिया. उन्होंने “आउटस्टैंडिंग केवीके नेटवर्क के माध्यम से उत्कृष्टता के द्वीप” विकसित करने, मंत्रालयों के साथ सहयोग बढ़ाने, और आईवीआरआई के साहित्य को स्थानीय भाषाओं में अनुवादित कर किसानों तक पहुंचाने का सुझाव दिया. साथ ही, जलवायु साक्षरता, मिथेन शमन, सेक्स सॉर्टेड सीमेन जैसी तकनीकों को ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ावा देने की आवश्यकता बताई.
किन एक्सपर्ट ने रखी अपनी राय
संस्थान निदेशक डॉ. त्रिवेणी दत्त ने कहा कि आईवीआरआई देश की पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन प्रणाली को मजबूत आधार प्रदान कर रहा है.
उन्होंने अनुसंधान प्राथमिकताओं के निर्धारण में अटारी व कृषि विज्ञान केंद्र से प्राप्त फीडबैक को आवश्यक बताया.
उन्होंने पशु पालन विशेषज्ञों के लिए व्यावसायिक पाठ्यक्रम, प्रमाणपत्र, पीजी डिप्लोमा प्रोग्राम की जानकारी दी और वैज्ञानिकों व किसानों के बीच संवाद को सशक्त करने की जरूरत पर जोर दिया.
बैठक में डॉ. रूपसी तिवारी, संयुक्त निदेशक (प्रसार शिक्षा), आईवीआरआई ने विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों ने आईवीआरआई से खेत पर परीक्षण (ओएफटी), अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन (एफएलडी) एवं अनुकूलनीय पशुपालन तकनीकों के एसओपी व पीओपी सहित तकनीकी सहयोग की अपेक्षा जताई.
साथ ही कृषि विज्ञान केन्द्रों के कार्मिकों, पशु चिकित्सकों एवं पशुपालकों हेतु प्रायोगिक प्रशिक्षण, टीके, कृमिनाशक, खनिज मिश्रण एवं निदान उपकरणों की मांग की गई.
फीड एवं चारा तकनीकों–जैसे कम लागत वाला राशन, साइलेज, टीएमआर, बाईपास पोषक तत्व आदि पर विशेष जोर रहा.
तकनीकी सत्र-I में डॉ. बबलू कुमार (प्रभारी, आईटीएमयू) ने संस्थान की बौद्धिक संपदा पर प्रस्तुति दी. डॉ. बृजेश कुमार ने प्रजनन स्वास्थ्य प्रबंधन पर वैज्ञानिक पद्धतियों को साझा किया.
डॉ. एलसी चौधरी ने पोषण प्रबंधन एवं संतुलित आहार निर्माण पर जानकारी दी जबकि डॉ. अनुज चौहान ने पशुपालन प्रबंधन रणनीतियों पर प्रकाश डाला.
इन मुद्दों पर हुई विस्तार से चर्चा
बैठक में फीड एवं चारा प्रबंधन के तहत क्षेत्रीय खनिज मिश्रण, साइलेज यूनिट, टीएमआर मशीन, ड्राई मैटर कैलकुलेटर, व लीस्ट कॉस्ट राशन सॉफ़्टवेयर जैसी तकनीकों की माँग रही.
पशु स्वास्थ्य में एलएसडी, ब्लूटंग, मैस्टाइटिस जैसे रोगों के टीकों और किफायती निदान किट पर चर्चा हुई.
प्रजनन प्रबंधन में सेक्स-सॉर्टेड सीमेन की सुलभता, नस्ल शुद्ध बकरियां, तथा गिर गायों में बांझपन निदान उपकरण की आवश्यकता बताई गई.
वन्य व आवारा पशु प्रबंधन के अंतर्गत बंदर, जंगली सूअर, कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण एवं जंगली पशुओं की नसबंदी के समाधान सुझाए गए.
रोजगार व ग्रामीण तकनीक में सोलर हैचरी, पैलेट मशीन, प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं कम श्रम वाले उपकरणों की माँग की गई. जलवायु सहनशीलता में मिथेन शमन व स्मार्ट चारा पर बल दिया गया.