नई दिल्ली. जब भी मौसम बदलता है तो पशुओं की देखरेख का तरीका भी बदल जाता है. ठंड, गर्मी या फिर हो बरसात, पशुपालकों को पशुओं की देखरेख का हर मौसम के लिहाज से करने का तरीका आना ही चाहिए. इस वक्त बरसात का सीजन चल रहा है. इसलिए बारिश में पशुओं की किस तरह देखरेख करना है ये जानना पशुपालकों के लिए बेहद ही अहम है. एक्सपर्ट कहते हैं कि इस मौसम में जब बारिश होती रहती है और बाढ़ आने का खतरा रहता है तो पशुओं को खुला रखना चाहिए. उन्हें कहीं भी बांधना भी नहीं चाहिए. ताकि अचानक आपदा की स्थिति में पशु स्वयं सुरक्षित स्थान पर जा सकें.
एक्सपर्ट का ये भी कहना है कि हर पशुपालकों को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि आसपास बिजली के तार सुरक्षित हों और जलने वाली चीजों से पशुओं को दूर रखें. बाढ़ जैसी अपादा के दौरान पशुओं की निगरानी रखना सबसे अहम होता है. साथ ही पानी के स्तर और बाढ़ के प्रभाव का निरीक्षण करना भी जरूरी है. ऐसा करना इसलिए जरूरी है कि आपदा आाने के दौरान पशुओं की हिफाजत की जा सके. उन्हें किसी तरह का नुकसान न हो.
पशु चिकित्सक की सलाह पर ये करें
कई बार आपदा के दौरान पशुओं की मौत हो जाती है. आपदा के दौरान मरे पशुओं को दफनाने के लिए 6 फीट गहरा गड्डा जो जल स्त्रोतों (नदी, कुएं) से कम से कम 100 फुट दुरी पर हो वहां का इस्तेमाल करना बेहतर होता है. जुलाई का महीना चल रहा है. इस महीने में पशुपालन सम्बन्धी कार्य जो हर पशुपालकों को करना चाहिए वो बाहरी परजीवी पर कंट्रोल करना है. इसके लिए कीटनाशक का उपयोग चिकित्सीय परामर्श से ही करें. डेयेरी फार्म पर नेचुरल तरीके से परजीवी नियंत्रण किया जा सकता है. जैसे की देसी मुर्गीपालन करके.
बीमारियों पर नियंत्रण करें
बारिश के दिनों में पशुओं को गीला चारा, काली/फफूंद लगी तूड़ी न दें, चारा उपलब्धता के लिए सम्पूर्ण फीड ब्लॉक का इस्तेमाल करें. शेड में व छतो पर जलभराव या स्त्राव न होने दें, पानी की निकासी पर ध्यान दें. बारिश में जहां इंसानों में मच्छरों द्वारा डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया आदि रोगों की सम्भावना बढ़ जाती है, वही पशुओं में बाहरी परजीवी (चिचड़, मख्खी आदि) से होने वाले रोग जैसे बबेसिया, सर्रा, थेलेरिया, आदि का प्रकोप बढ़ सकता हैं. बचाव हेतु साफ़ सफाई पर ध्यान दें, बाड़े में जल भराव न होने दें, परजीवी नियंत्रण पर ध्यान दें, बाड़े में पंखे व हवा का आवागमन (वेंटिलेशन) हो.