नई दिल्ली. डेयरी फार्मिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले पशुओं को सन्तुलित आहार देना चाहिए. यही पशु उत्पादन का महत्वपूर्ण आधार भी है. कई तरह के पशुपालन व्यवसाय जैसे-डेयरी, बकरी, भेड़, शुकर एवं मुर्गी पालन आदि में कुल खर्च का लगभग 60-70 प्रतिशत अंश पशु आहारों पर खर्च होता है. पशुपालक, पशु आहारों के अवयवों की गुणवत्ता, जितनी अच्छी रखेगा, तो वह पशुपालन की लागत को उतना ही कम कर सकता है. इसलिए मवेशियों के आहारों की गुणवत्ता का ज्ञान पशुपालक को होना बहुत ही आवश्यक है. पशुपालक को जितना अधिक आहार एवं उसके अवयवों की गुणवत्ता की जानकारी होगी. तो तय है कि ज्यादा फायदा मिलेगा.
सन्तुलित पशु आहार बनाने में इस्तेमाल होने वाले अवयवों में मुख्य रूप से अनाजों के रूप में मक्का, ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी, रागी एवं अनाज उप-उत्पाद के रूप में गेहूं का चापड़, धान का कोड़ा, खली के रूप में मूंगफली, सोयाबीन, सरसों, कपास, रामतिल, तिल एवं अलसी की खली एवं खनिज मिश्रण का उपयोग होता है.
आहार की इस तरह करें जांच
पशुओं में निर्धारित उचित वृद्धि दर, दूध उत्पादन, प्रजनन क्षमता, रोग निरोधक क्षमता और बैलों में कम क्षमता बनाये रखने के लिये भारत में पशु आहारों एवं उसके अवयवों की गुणवत्ता के नियम के लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (BIS) नई दिल्ली द्वारा कुछ मापदंड सुझाये गये हैं.
इनकी जानकारी भी पशुपालकों को होनी चाहिए. पशु आहारों की गुणवत्ता के लिये खाद्य अवयव का नमूना निकट की प्रयोगशाला में देकर इसका परीक्षण कराये.
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, रीवा (मध्य प्रदेश) Veterinary and Animal Husbandry College, Rewa (Madhya Pradesh) के मुताबिक इसके लिये बोरों में से अलग-अलग जगहों से नमूने निकालकर उन्हें अच्छी तरह से मिश्रित कर लगभग 500 ग्राम नमूना निकट की प्रयोगशाला में परीक्षण के लिये भेजें.
बाहरी तत्वों जैसे कि रेत, कंकड़, विषैले खरपतवार के बीज, मिलावटी पदार्थ एवं अन्य बाह्य पदार्थों इत्यादि का परीक्षण छलनी से छानकर कर सकते हैं.
पशु आहारों में उपस्थित कीट एवं फफूंद की जांच करना जरूरी है. इसलिए खाद्य पदार्थ को अच्छी तरह से जांचें-परखें कि उनमें किसी प्रकार के कीट एवं फफूंद न हों अन्यथा यह पशुओं के लिये हानिकारक हो सकता है.
मवेशियों के आहारों व उनके अवयवों का एक विशेष रंग, गंध, स्वाद होता है। इसमें कोई दुर्गंध, खट्टापन, कड़वापन या सड़न नहीं होनी चाहिए.