नई दिल्ली. ज्वार गर्म-नम जलवायु वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है. पश्चिम अफ्रीका को ज्वार का उत्पत्ति स्थल माना जाता है. ज्वार की विभिन्न किस्मों को समुद्र तल से 2700 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जा सकता है. जायद में ज्वार की बहु कटाई तथा खरीफ में एकल कटाई किस्में बोनी चाहिए जिनमें एच.सी.एन. की मात्रा कम हो. अच्छे पानी निकास वाली दोमट, बलुई दोमट भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त है. पलेवा करके एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 1-2 जुताई कल्टीवेटर हल से करनी चाहिए. हर जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए.
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की मानें तो बहु कटाई किस्मों की बुवाई मार्च के दूसरे हफ्ते से मार्च अंत तक करनी चाहिए तथा एकल कटाई किस्मों की बुवाई जून के अंतिम और जुलाई के प्रथम सप्ताह में करनी चाहिए. एकल कटाई किस्म की बीज दर 40-50 किलो ग्राम और बहु कटाई किस्म की बीज दर 25-30 किग्रा. प्रति हैक्टेयर होनी चाहिए. आमतौर इसे छिटकवां बोते हैं. 25-30 सेमी. की दूरी पर लाइनों में इसकी बुवाई करना अच्छा होता है.
कितना डालना चाहिए उर्वरक
उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण के आधार पर करें. 30 किग्रा. नत्रजन तथा 40 किग्रा. फोस्फोरस प्रति हैक्टेयर बुवाई के समय प्रयोग करें.
एक माह बाद 60 किग्रा. नत्रजन दें. प्रत्येक कटाई के बाद 50 किग्रा. प्रति हैक्टेयर नत्रजन का प्रयोग करें.
खतपतवार नियंत्रण के लिए बोने के तुरंत बाद रासायनिक खतपतवार नाशक एट्राजीन 1 किग्रा. प्रति हैक्टेयर और पेंडीमिथैलिन 1.5 किग्रा. प्रति हैक्टेयर 600 लीटर पानी में एक साथ घोलकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें।
फसल को वर्षा होने से पूर्व हर 8 से 12 दिन बाद सिंचाई की जरूरत पड़ती है.
बुवाई के 60-70 दिन बाद (फूल वाली अवस्था पर) हरे चारे के लिए पहली कटाई करनी चाहिए, इसके बाद फसल हर 45-50 दिन बाद काटने योग्य हो जाती है.
मार्च में बोई गई ज्वार से सितम्बर के अंत तक 4 बार कटाई की जा सकती है.
हरे चारे की उपज प्रति कटाई में 20-25 टन प्रति हैक्टेयर प्राप्त हो सकती है.