नई दिल्ली. पशुओं को सालभर हरे चारे की जरूरत होती है. क्योंकि पशुओं को हरे चारे से तमाम पौष्टिक गुण मिलते हैं, जिससे उन्हें ज्यादा दूध उत्पादन करने में मदद मिलती है. दिक्कत ये है कि पशुओं के लिए सालभर हरा चारा मुहैया कराना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में समझदारी इसी में है कि इसकी जरूरत साइलेज से पूरी की जाए. एक्सपर्ट का कहना है कि बरसात में उत्पादित फसलों और घास को हम साइलेज के रूप में संरक्षित कर सकते हैं. साइलेज हरे चारे के संरक्षण का तरीका है. इसके तहत हरे चारे को उसकी रसीली अवस्था में एक गड्ढे में दबाकर सुरक्षित रखा जाता है.
एक्सपर्ट के मुताबिक जिन फसलों में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट अधिक मात्रा में होता है। उन फसलों से अच्छा साइलेज बनता है. जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा, नेपियर, गिनी घास. जिन फसलों में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट कम होता है. इनमें 2 से 4 फीसदी तक शीरा मिलाते हैं, जैसे उष्ण कटिबंधीय घास और दलहन फसलें.
साइलेज के लिए कब काटें चारा फसल
एक्सपर्ट के मुताबिक कभी-कभी शीरे के स्थान पर रेशों को पचाने वाले एंजाइम का भी इस्तेमाल करते हैं. एंजाइम की मात्रा 4-5 ग्राम प्रति किलो के आधार पर रखी जाती है. घास से बने साइलेज को अधिक पौष्टिक बनाने के लिए उसमें यूरिया (5 से 1 प्रतिशत) मिला सकते हैं. फसलों से साइलेज बनाने के लिए उनमें सूखा भार 35 फीसदी होना चाहिए. जब चारा फसलों में 50 फीसदी फूल आ जाए और नमी की मात्रा 65-70 फीसदी हो तब काटें लें. साइलेज बनाने के लिए चारा फसलों को शाम को काटें. जिससे रात में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ जाए.
इस तरह बनाएं
कुट्टी काटे गए चारे को साइलो बैग्स या गड्ढे में भरकर दबा दें. जिससे हवा बाहर आ जाए और किण्वन शुरू हो जाए. चारा फसलों को 2-3 फीट साइलों की दीवारों से ऊपर तक भरें ताकि साइलेज के बैठ जाने की स्थिति में साइलेज गड्ढे के ऊपरी स्तर से ऊपर रहे. इससे बारिश का पानी अन्दर नहीं जा पाएगा. अब इन साइलो बैग्स या गड्ढे को प्लास्टिक से अच्छी तरह बंद कर 30-40 दिनों के लिए रखें.
क्या हैं साइलेज के फायदे
साइलेज विधि में अन्य संरक्षण विधियों की तुलना में पोषक तत्त्वों की नुकसान कम होता है. सूखे और अकाल के समय भी रसदार चारा वर्षभर उपलब्ध रहता है. साइलेज में आग लगने का खतरा नहीं रहता. इसे सभी मौसम में तैयार कर सकते हैं. हरी फसलें कोमल और रसदार अवस्था में उपलब्ध होने से इसमें पाचक और पोषक होते हैं.