Animal Husbandry: गर्मी में कैसे होती है थनैला बीमारी, बचाव और इलाज के बारे में भी जानें यहां

HF Cross Cow milk per day

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. पशुओं के लिए बीमारी हर तरह से नुकसानदेह होती है. गर्मी के मौसम में थनैला बीमारी होने से पशुपालकों को कई तरह का नुकसान उठाना पड़ता है. यह बीमारी दुधारू पशुओं में थन और लेवटी को प्रभावित करती है. जिससे दूध उत्पादन में कमी आती है और पशुपालकों को नुकसान हो जाता है. जबकि इससे पशुओं की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है. सेहत खराब होने का सीधा सा मतलब है कि पशु आगे चलकर बार-बार बीमार हो सकता है. वहीं ये बीमारी एक पशु से दूसरे पशु में भी फैल सकती है, जिससे पूरे झुंड में बीमारी फैलने का खतरा रहता है. इसलिए वक्त पर इसका इलाज करना बेहद जरूरी है.

एनिमल एक्सपर्ट कहते हैं कि गर्मी में होने वाले थनैला रोग की जांच जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा होता है. इ​सलिए पशु पालकों को दूध की जांच नियमित रूप से हर दो सप्ताह में मैस्ट्रिप से करनी चाहिए.

इलाज के बारे में पढ़ें
गर्मी में थनैला अपनी शुरुआती अवस्था में है तो थनों को दूध निकालने के बाद साफ पानी से धोकर दिन में दो वार मैस्ट्रिप क्रीम का लेप प्रभावित तथा अप्रभावित दोनों थनों पर जरूर करें और युनिसेलिट का 15 दिनों तक प्रयोग करें.

गर्मी थनैला को अपने उग्रवस्था में होने पर पशु चिकित्सक की परामर्श इस एंटीबायोटिक दवाओं के साथ मैस्तिलेप का उपयोग करें.

गर्मी में पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु युनिसेलिट की 15 ग्राम मात्रा ब्यात के 15 दिन के पहले शुरू करके लगातार 15 दिनों तक देनी चाहिए. इस प्रकार ब्यांत के बाद पशुओं में होने वाले थनैला रोग की संभावना कम हो जाती है.

आमतौर पर यह थनैला की वह अवस्था होती है जो बिना ब्यात पशु में हो जाती है. अक्सर बाड़े में सफाई का उचित प्रबंध न होने बाहरी कीड़ों के संक्रमण, पशु के शरीर पर फोड़े-फुंसियों होने व गर्मी में होने वाले तनाव से भी थानैले की संभावना ज्यादा हो जाती है.

लक्षण क्या हैं

शरीर का तापमान बढ़ जाना.

अयन का सूज जाना व उसमें कड़ापन आ जाना.

थनों में गंदा बदबूदार पदार्थ निकलना.

कभी-कभी थों से खून आना.

उपचार

गुनगुने पानी में नमक डालकर मालिश करें.

थनों से जहाँ तक संभव हो दूध को निकलते रहें.

थनों पर मैस्टीलेप दिन में दो बार दूध निकलने के बाद प्रयोग करें.

पशु चिकित्सक की सहायता से उचित उपचार करवाएं.

ये काम जरूर करें
ब्यात के बाद जब पशु दूध देना बंद करता है उस मस्य पशु चिकित्सक की सहायता से थनों में एंटीबायोटिक दवाएं डाली जाती है जिसे ड्राई अदर थरेपी कहते हैं.

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