Animal News: ‘अगर इस तरह के कदम उठाए जाएं तो इंसानों के साथ कुत्तों को भी किया जा सकता है सेफ’

The Central Government has notified the Animal Birth Control Rules, 2023 in supersession of the Animal Birth Control (Dogs) Rules, 2001 to strengthen the implementation of the animal birth control programme.

प्रतीकात्मक तस्वीर।

नई दिल्ली. देश की राजधानी में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कुत्तों को पकड़ने अभियान के बाद इसको लेकर एनिमल लवर और आम लोग अलग—अलग धड़े में बंट गए. इसे सही और गलत ठहराया जाने लगा है. कुत्तों के साथ आम इंसानों का कैसा व्यवहार होना चाहिए और उनकी जरूरत जैसे अहम मसले पर भारत सरकार के प्रमुख मंत्रालयों के साथ और खासकर पशुपालन मंत्रालय के साथ काम कर चुकीं मलिका पांडेय की भी अपनी राय है. उनका कहना है कि पिछली सदी तक कई भारतीय गांवों में, कुत्तों का “मालिक” नहीं माना जाता था, बल्कि उन्हें जूठन खिलाई जाती थी, आंगन में आश्रय दिया जाता था. इसे लोग अपनी जिम्मेदारी मानते थे. आज भी भारत के कई शहरों में, लोग आवारा कुत्तों को खाना खिलाते हैं.

वहीं दूसरी ओर रेबीज भारत की जन स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है. 2025 के पहले महीनों में 4.2 लाख से ज्यादा कुत्ते के काटने के मामले दर्ज किए गए हैं. उन्होंने कहा कि ये मामले हमें रोकथाम, प्रतिक्रिया और जागरूकता की उन तरीकों को अपनाने की ओर इशारा करता है जिसमें कुत्तों और इंसानों की सेफ्टी हो.

जानें, क्या और कहा
मलिका पांडेय ने बताया कि साल 1994 में जब सूरत में रेबीज को नियंत्रित करने के लिए कुत्तों को मारा जाने लगा तब चूहों की संख्या बढ़ गई और फिर प्लेग का प्रकोप फैल गया.

ऐसे में एक कदम नगर पालिका या वार्ड स्तर पर उठाया जा सकता है कि फीडर रजिस्ट्री का रखरखाव किया जाएए. जिसमें नसबंदी और टीकाकरण का विवरण दर्ज हो.

साधारण टैगिंग के बजाय, कुत्तों को माइक्रोचिप लगाकर एक डिजिटल निगरानी प्लेटफार्म से जोड़ा जा सकता है जो टीकाकरण, नसबंदी और स्वास्थ्य रिकॉर्ड को वास्तविक समय में अपडेट करता है.

भोजन को टीकाकरण के साथ जोड़ा जाना चाहिए. राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम की तर्ज पर एक फ्री वार्षिक रेबीज टीकाकरण अभियान, आवारा और सामुदायिक कुत्तों के शत-प्रतिशत कवरेज को टारगेटट कर सकता है.

आवारा कुत्तों का प्रबंधन तब सबसे अच्छा होता है जब जिम्मेदारी साझा की जाती है. वर्तमान में, यह काम मुख्यतः शहरी स्थानीय निकायों के पास है.

नगर पालिका की पहुंच को पशु चिकित्सा विशेषज्ञता के साथ जोड़ सकता है, जिससे नसबंदी में तेजी आ सकती है, रोग निगरानी में सुधार हो सकता है और निरंतर टीकाकरण कवरेज सुनिश्चित हो सकता है.

जागरूकता और स्कूलों और मोहल्लों में कार्यक्रम के जरिए जानवरों के आसपास सुरक्षित व्यवहार सिखा सकते हैं. इससे कुत्तों के काटने की घटनाएं कम होंगी.

उन्होंने कहा कि कुत्तों के साथ हमारा रिश्ता हमेशा से स्वामित्व से ज्यादा साझेदारी का होना चाहिए. उन्होंने हमारे घरों की रखवाली की है, हमारी यात्राओं में साथ दिया है और रात में पहरा दिया है.

यह साझेदारी भीड़-भाड़ वाले शहरों में भी बनी रह सकती है, अगर यह स्थिर, संगठित और साझा देखभाल पर आधारित हो.

भोजन देना उदारता का कार्य हो सकता है, लेकिन जब इसे रजिस्ट्री, माइक्रोचिपिंग, टीकाकरण अभियान और समन्वित प्रबंधन द्वारा समर्थित किया जाता है.

यह देखभाल की उस श्रृंखला का पहला कदम बन जाता है जो समुदायों और उनके बीच रहने वाले जानवरों, दोनों की रक्षा करता है.

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