नई दिल्ली. मछली पालन हो या फिर पशुपालन बीमारियां इन कामों में नुकसान लेकर आती हैं. अगर आप खुद को नुकसान से बचाना चाहते हैं तो बीमारियों से बचाव का तरीका पता होना चाहिए. मछली पालन के दौरान भी कई बीमारियां मछलियों को परेशान करती हैं, इससे उत्पादन पर गहरा असर पड़ता है. इसलिए उत्पादन बेहतर करने और पशुओं की हैल्थ अच्छी रखने के लिए ये बेहद ही जरूरी है कि मछलियों को बीमारियों से बचाया जाए. फिश एक्सपर्ट कहते हैं कि तालाब में बीमार मछलियां बहुत जल्दी दूसरी मछलियों को भी बीमार कर देती हैं.
मछलियों को कई बीमारियां होती हैं. उन्हीं बीमारियों में एक है ईयूएस बीमारी. इस आर्टिकल में हम आपको मछली की इसी बीमारी के बारे में जानकारी देंगे. इस बीमारी की पहचान और इलाज के बारे में भी बताएंगे. आइए यहां डिटेल इस बारे में जानते हैं. बता दें कि इसे वैज्ञानिक भाषा में ईयूएस (एपीजूटिक अल्सरेटिव सिन्ड्रोम) रोग कहते हैं. इस रोग से प्रभावित होने वाली प्रमुख प्रजातियां गरई, भाकुर, रोहू, कवई, टेंगरा, नैनी, ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प, इत्यादि हैं. बता दें कि विशेष जानकारी और चिकित्सा के लिए बिहार में जिला मत्स्य कार्यालय से संपर्क करे सकते हैं.
ईयूएस रोग की पहचान
संक्रमित मछलियों के शरीर पर लाल रंग के धब्बे जैसा घाव हो जाता है जो धीरे-धीरे शरीर पर फैल जाता है.
संक्रमित मछलियां पानी की ऊपरी सतह पर उछलने लगती हैं.
ज्यादा संक्रमित मछलियों में गहरे घाव होने के कारण चमड़े का उपरी भाग टूट कर गिरने लगता है.
सामान्य रूप से मछलियों में पायी जानेवाली इस बीमारी को लाल घाव के नाम से जाना जाता है.
ईयूएस बीमारी का निदान
चूने का छिड़काव 200-600 किलो ग्राम प्रति हेक्टर पानी की गहराई की दर से करने से इस रोग पर काबू पाया जा सकता है.
पोटैशियम परमैग्नेट 2 मिली ग्राम प्रति ली की दर से नमक का घोल 400 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर मीटर पानी की गहराई की दर से संयुक्त रूप से एक-एक दिन के गैप पर 6 दिनों तक करने से इस रोग पर 90 प्रतिशत नियंत्रण पाया जा सकता है.
हैल्दी मछलियों की क्या है पहचान
हैल्दी मछलियों का शरीर चमकता हुआ होता है. प्राकृतिक रंग नजर आता है.
मछली का पंख और पूंछ मांसपेशियाँ के साथ कसा हुआ होता है.
शरीर पर कोई घाव या फोड़ा का नहीं होना चाहिए.
कभी तालाब की सतह पर शरीर को घसीटते ना दिखाई देना चाहिए.
मछली का कभी तालाब के किनारे पर ना आना.