नई दिल्ली. देश में चार गुना सीवीड उत्पादन बढ़ गया है. जबकि और ज्यादा बढ़ने की संभावना भी है. क्योंकि देश में इसकी खेती की बहुत संभावनाएं हैं. यह जानकारी मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री जॉर्ज कुरियन ने दी है. उन्होंने कहा कि 11,099 किलोमीटर लंबे अनुकूल परिस्थितियों वाले भारतीय समुद्र तट में समुद्री शैवाल की खेती की अपार संभावनाएं हैं. रिसर्च संस्थानों ने भारत के समुद्र तट पर 24,707 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले 384 स्थलों की पहचान की है जो समुद्री शैवाल की खेती के लिए उपयुक्त है. समुद्री शैवाल की खेती और उससे जुड़े काम का विषय मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार को कार्य आवंटन नियमों (AoBR) के अंतर्गत आवंटित किया गया है.
मंत्री ने कहा कि मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार एक प्रमुख योजना, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) का कार्यान्वयन कर रहा है और समुद्री शैवाल की खेती, PMMSY के अंतर्गत प्राथमिकता वाली गतिविधियों में से एक है ताकि मछुआरों और तटीय समुदायों को रोजगार सृजन और आय के अतिरिक्त स्रोत की सहायता मिल सके.
कितना और कैसे बढ़ा उत्पादन
सरकार की कई पहलों के कारण समुद्री शैवाल उत्पादन 2015 में 18,890 टन से बढ़कर 2024 में 74,083 टन हो गया है.
वहीं पिछले पांच वर्षों के दौरान, PMMSY के अंतर्गत, मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने गुजरात राज्य सरकार को 897.54 करोड़ रुपए के मछली विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी है.
इसमें राज्य के अनुरोध के अनुसार समुद्री शैवाल की खेती के लिए मोनोलाइन/ट्यूबनेट की स्थापना शामिल है.
PMMSY में अन्य बातों के साथ-साथ समुद्री शैवाल की खेती और उससे संबंधित गतिविधियों के लिए सहायता की परिकल्पना की गई है, जो तटीय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में चल रहा है.
PMMSY के तहत विगत 5 वर्षों (2020-25) के दौरान 195 करोड़ रुपए की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिसमें तमिलनाडु में एक सीवीड पार्क (127 करोड़ रुपए) की स्थापना भी शामिल है.
इसके अलावा, लाभार्थियों को राफ्ट और मोनोलाइन, ट्यूबनेट की स्थापना, सीवीड सीडबैंक की स्थापना, पूर्व-व्यवहार्यता मूल्यांकन अध्ययन, जागरूकता सृजन, प्रशिक्षण और विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में क्षमता निर्माण कार्यक्रमों आदि के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है.