Dairy Animal News: प्रोटीन और फाइबर से भरपूर इस चारा फसल से अच्छी उपज लेने के लिए करें ये काम

ग्वार की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. पशुपालन करके डेयरी कारोबार करने वालों पशुओं के लिए हरे चारे की जरूरत खूब पड़ती है. क्योंकि हरे चारे में वो तमाम पोषक तत्व होते हैं जो पशुओं को ज्यादा दूध उत्पादन करने में मदद करते हैं. इसी में ग्वार का भी नाम आता है. ग्वार उत्तर भारत के शुष्क भागों की प्रमुख दलहनी चारा फसल है. आमतौर पर यह ज्वार और बाजरा के साथ सहफसल की तरह उगाई जाती है. सूखे क्षेत्रों में पाले जा रहे पशुओं के लिए ये चारा फसल किसी वरदान से कम नहीं है. जबकि इसमें कई पौष्टिक गुण भी हैं.

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक ग्वार को जिसे क्लस्टर बीन के नाम से भी जाना जाता है. इसमें भरपूर मात्रा में प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न पोषक तत्वों होते हैं. ग्वार का उपयोग न केवल भोजन के रूप में किया जाता है, बल्कि इसका उपयोग चारा, गोंद (ग्वार गम) और दवा उद्योगों में भी किया जाता है.

यहां कृषि का तरीका जानें
ग्वार की अच्छी बढ़वार के लिए बलूई-दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है. यह काली मिट्टी में अच्छी उपज नहीं देती है.

खेत तैयार करने के लिए सामान्यतः एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और दो जुताई कल्टीवेटर हल से करनी चाहिए.

बरसात के मौसम का आरंभिक समय ग्वार बोने का सर्वोत्तम समय होता है. सिंचित क्षेत्रों में इसको मध्य मार्च से मध्य अगस्त तक बोया जा सकता है.

बीज को कतारों में 30 सेमी. की दूरी पर बोना चाहिए.

अच्छी उपज के लिए 25-30 किग्रा बीज प्रति हैक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

उर्वर जमीन में ग्वार की फसल में उर्वरक डालने की आवश्यकता नहीं होती है. जिस भूमि में फोस्फोरस की कमी हो, उसमें लगभग 50-60 किग्रा. फोस्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से डाला जा सकता है.

गर्मी में बोई जाने वाली फसल में सिंचाई आवश्यक होती है. पहली सिचाई (पलेवा) बुवाई से पहले देनी चाहिए. ग्वार की बुवाई के बाद 15-20 दिन के अंतर पर सिचाई करनी चाहिए.

चारे के लिए फसल को फूल आने की अवस्था या फली बनने की अवस्था में काटना चाहिए.

सिंचित अवस्था में बोई गई फसल से हरे चारे की उपज लगभग 30-35 टन प्रति हैक्टेयर और असिंचित फसल से 15-20 टन प्रति हैक्टेयर प्राप्त होती है.

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