नई दिल्ली. बाजार में मछली को खरीदते वक्त ग्राहक सबसे ज्यादा जिंदा मछली होने को तरजीह देते हैं. यदि मछली जिंदा होती है तो मछली पालकों को ज्यादा फायदा होता है क्योंकि ग्राहकों को ये ज्यादा पसंद आती है. हालांकि तालाब, नदी और समुंद्र से निकाली जाने वाली मछली को ग्राहकों तक जिंदा पहुंचाना कोई आसान काम नहीं है. क्योंकि मछली को निकालकर ग्राहकों तक पहुंचाने में पांच-छह घंटे लग जाते हैं. इसके चलते मछली को जिंदा बाजार लाने का खर्च भी बढ़ जाता है. हालांकि सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट टेक्नोंलॉजी एंड इंजीनियरिंग (सीफेट), लुधियाना ने मछली कारोबारियों की इस परेशानी को आसान कर दिया है. आइए जानते हैं.
लाइव फिश कैरियर सिस्टम है कारगर
जानकारी के मुताबिक सीफेट ने जिंदा मछलियों को बाजार तक पहुंचाने के लिए एक लाइव फिश कैरियर सिस्टम को डेवलप कर दिया है. अच्छी बात ये है कि सीफेट द्वारा बनाया यह सिस्टम अब बाजार में भी उपलब्ध है. महाराष्ट और हिमाचल प्रदेश की दो अलग-अलग कंपनियां इसे बनाने का काम कर रही हैं. अब ये मछली पालकों की जरूरत पर निर्भर करता है कि उन्हें छोटा या बड़ा सिस्टम खरीदना है. बता दें कि पहाड़ी इलाकों जैसे उत्तराखंड, हिमचाल प्रदेश में मछली पालन करना बहुत ही मुश्किल काम है. यहां जिंदा मछली भी बाजार में नहीं मिलती है. इस मुश्किल से बचने के लिए यहां के मछली पालक दूसरे राज्य और शहरों से लाइव फिश कैरियर सिस्टम में मछली भरकर ला सकते हैं.
टेक्नोलॉजी के बारे में यहां पढ़ें
लाइव फिश कैरियर सिस्टम बनाने वाले सीफेट के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. अरमान मुजाद्दादी कहते हैं कि संस्थान हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में इस सिस्टम की टेक्नोलॉजी को अब तक बेच चुका है. जबकि इन दोनों ही राज्यों में लाइव फिश कैरियर सिस्टम बनाने का काम शुरू किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि ऑर्डर के हिसाब से सिस्टम तैयार किया जाता है. हमारे संस्थान ने मॉडल के तौर पर सबसे छोटा सिस्टम तैयार कर दिया है. इस टेक्नोलॉजी की मदद से एक हजार किलो वजन की क्षमता वाला बड़ा सिस्टम भी तैयार किया जा सकता है.
ई-रिक्शा पर इंस्टाल हो जाता है सिस्टम
डॉ. अरमान ने इस सिस्टम के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि 100 किलो मछली की क्षमता के हिसाब से ई-रिक्शा पर इस सिस्टम को आसानी से इंस्टाल किया जा सकता है. ई-रिक्शा को हटाकर सिस्टम की बात करें तो इसकी लागत दो लाख रुपये है. वहीं बाजार में 400 से 500 किलो तक मछली ले जाना चाहते हैं तो कार्ट की लागत चार लाख रुपये और 700 से 800 किलो वजन तक मछली के लिए कार्ट की लागत पांच लाख रुपये तक है. मछलियों के वजन के हिसाब से ई-रिक्शा की जगह गाड़ी बड़ी होती चली जाती है.
ऐसे काम करता है लाइव फिश कार्ट
डॉ. अरमान ने कहते हैं कि वजन के हिसाब से पीवीसी का एक टैंक गाड़ी पर लगाया गया है. पानी को साफ करने के लिए टैंक के ऊपरी हिस्से में फिल्टर लगाए गए हैं. दरअसल, गंदे पानी में आक्सीजन भी नहीं बनती है. वहीं पानी में मूवमेंट देने के लिए एक शॉवर भी लगाया जाता है. उन्होंने बताया कि चाहे जो भी मौसम होमछली को 15 से 20 डिग्री तापमान वाले का पानी की जरूरत होती है. इसलिए एक चिलर लगाना होता है. जबकि सर्दी में हीटर लगाया जाता है. पानी में बुलबुले बनाने के लिए हवा छोड़ने वाली मोटर लगाई जाती है ताकि हवा में मौजूद आक्सीजन आराम से जल्दी ही पानी में घुल जाए.