नई दिल्ली. मुर्गी पालन वैसे तो अच्छा काम है और इसमें अच्छा मुनाफा भी कमाया जा सकता है लेकिन मुर्गी पालन की मुकम्मल जानकारी होना भी जरूरी है. तभी फायदा होगा, नहीं तो नुकसान होगा. कुक्कुट विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, मथुरा (Department of Poultry Science, College of Veterinary Science and Animal Husbandry, Mathura) के एक्सपर्ट का कहना है कि जलवायु-अनुकूल मुर्गी पालन प्रणालियों में चारा और पोषण प्रबंधन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. गर्मी के तनाव के दौरान, पक्षियों को अपना शारीरिक संतुलन बनाए रखने के लिए अतिरिक्त इलेक्ट्रोलाइट्स, एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन की जरूरत होती है.
चारे की कमी और कीमतों में उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए, किसान चावल की भूसी, सूरजमुखी की खली, कसावा, रसोई का कचरा और काली सैनिक मक्खी के लार्वा जैसे कीटों जैसे वैकल्पिक चारे के स्रोतों का उपयोग कर सकते हैं. बता दें कि ये विकल्प पारंपरिक अनाज पर निर्भरता कम करते हैं और चारे की लागत कम करते हैं.
क्या करनाहै जानें यहां
पोषक तत्व-विशिष्ट फॉर्मूलेशन और स्वचालित फीडर जैसी सटीक आहार तकनीकें, पोषक तत्वों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करती हैं.
ये नुकसान को कम करती हैं, जिससे उत्पादकता और पर्यावरणीय स्थिरता में सुधार होता है. जिसका फायदा मिलता है.
जलवायु में बदलाव के कारण उत्पन्न होने वाली बीमारियों की गति में बदलाव से निपटने के लिए स्वास्थ्य और जैव सुरक्षा उपायों को मज़बूत करना जरूरी है.
बढ़ते तापमान के कारण नए रोगाणुओं और वाहकों के उभरने के लिए अपडेट टीकाकरण कार्यक्रम और मजबूत रोग निगरानी प्रणालियों की आवश्यकता होती है.
नियंत्रित पहुंच, नियमित कीटाणुशोधन और कृंतक-रोधी जैसे जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल बीमारियों के प्रकोप को रोकने के लिए आवश्यक हैं.
मोबाइल पशु चिकित्सा सेवाएँ, मौसम-आधारित रोग पूर्वानुमान और पूर्व चेतावनी के लिए डिजिटल उपकरण पोल्ट्री किसानों की तैयारी और प्रतिक्रिया क्षमता को काफी बढ़ा सकते हैं.
निष्कर्ष
एक्सपर्ट का कहना है कि अगर आप इन कामों को करते हैं तो मुर्गी पालन में आपको फायदा ज्यादा मिलने लगेगा और फिर आप मुर्गी पालन के अपने काम को बढ़ा भी पाएंगे.