Poultry Farming: क्या है ब्रॉयलर इंटीग्रेटर मॉडल, पढ़ें इस तरह से पोल्ट्री फार्मिंग के फायदे और नुकसान

अंडा और चिकन की बढ़ती मांग को दूर करने के लिए उत्तराखंड सरकार ने प्रयास तेज किए हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर।

नई दिल्ली. भारत में पोल्ट्री सेक्टर इनोवेशन, परंपरा और लचीलेपन के धागों से बुना हुआ एक मजबूत रिश्ता है. भारत में ब्रॉयलर व्यवसाय की बात की जाए तो इसके मूल में ब्रॉयलर इंटीग्रेटर मॉडल है. गौरतलब है कि पोल्ट्री फार्मिंग के बिजनेस में छोटे-छोटे चूजे लाए जाते हैं. इन्हें दाना-पानी देकर मोटा-ताजा किया जाता है. ताकि ये जल्दी से वजन हासिल कर लें और फिर इन्हें बेचा जा सके. आपको बता दें कि पोल्र्टी फार्मर्स से बड़े ब्रॉयलर व्यापारी और खुदरा विक्रेता मुर्गा खरीदते हैं और लाखों भारतीय घरों में चिकन परोसने का काम करते हैं.

कुक्कुट विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, मथुरा (Department of Poultry Science, College of Veterinary Science and Animal Husbandry, Mathura) के एक्सपर्ट का कहना है कि ब्रॉयलर फार्मिंग का बिजनेस एक अच्छा काम है और इससे बेहतर कमाई की जा सकती है.

इंटीग्रेटर: दक्षता के आर्किटेक्ट
ब्रॉयलर इंटीग्रेटर भारत के पोल्ट्री सेक्टर की रीढ़ हैं. वे उत्पादन के हर चरण को नियंत्रित करते हैं, एक दिन के चूजों के प्रजनन से लेकर चिकन मांस के प्रोसेसिंग और वितरण तक.

किसानों को चूजे, चारा और तकनीकी सहायता प्रदान करके, इंटीग्रेटर मानकीकृत उत्पादन और गुणवत्ता सुनिश्चित करते हैं. फिर भी, यह मॉडल अपनी जटिलताओं के बिना नहीं है.

वित्तीय रूप से, इंटीग्रेटर कम मार्जिन पर काम करते हैं, जिसमें फीड लागत उनके खर्चों का 60-70 फीसद हिस्सा लेती है.

मक्का और सोयाबीन की कीमतों में उतार-चढ़ाव उन्हें सतर्क रखता है, जबकि एवियन इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी का प्रकोप रातों-रात पूरे झुंड को खत्म कर सकता है.

इन चुनौतियों के बावजूद, इंटीग्रेटर्स ने उद्योग के विकास को गति दी है. 15-25 फीसद का ROI प्राप्त किया है.

इसने चिकन मीट की बढ़ती मांग को पूरा किया है. इस वक्त देश में सबसे ज्यादा चिकन का मीट ही खाया जाता है.

सरकारी आंकड़े की मानें तो देश में तकरीबन 70 फीसद नॉनवेजेटेरियन लोगों में से 45 परसेंट लोग चिकन खाते हैं.

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