नई दिल्ली. बेल्लारी भेड़ की नस्ल बेल्लारी और दावणगेरे जिले और कर्नाटक के कावेरी और चित्रदुर्ग जिलों के आसपास के क्षेत्र में पाई जाती है. इस भेड़ की नस्ल की कर्नाटक क्षेत्र और तमिलनाडु के तेलंगाना की सीमा पर बहुत अच्छी मांग है. इस नस्ल को मांस के उद्देश्य से बहुत ज्यादा पसंद किया जाता है और इसे खूब पाला जाता है. लोगों के बीच इसके मीट की मांग की वजह से ये पालकों को खूब फायदा भी पहुंचाती है. जबकि इसका ऊन बेहद मोटा होता है. वहीं इसके वजन की बात की जाए तो ये 12 महीने में 18 किलो तक वजन हो जाता है.
पेट और पैर पर नहीं रहता है ऊन
यह दक्कानी भेड़ से बहुत भिन्न है. उत्तर में तुंगभद्र नदी के उत्तर में पाई जाने वाली भेड़ को दक्कानी और इसके दक्षिण में पाई जाने वाली भेड़ को बेल्लारी कहा जाता है. वह मध्यम आकार के जानवर हैं. जिनके शरीर का रंग सफेद से लेकर सफेद और काला मिलाकर विभिन्न संयोजनों के माध्यम से होता है. अधिकांश भेड़ के सिंह होते हैं. जबकि इनके कान मध्य लंबे और झुके हुए होते हैं. पूंछ छोटी और पतली होती है. इसका ऊन बेहद मोटा और बालों वाला और खुला होता है. इसके पेट और पैर पर ऊन नहीं रहता है.
कितनी है देश इस भेड़ की संख्या
किसानों के झुंडों में मेमनों का प्रतिशत 80 फीसदी होता है. इसका प्रजनन अधिकतर शुद्ध होता है. मेढ़ों का चयन आकर के आधार पर किया जाता है. जानवरों को मुख्यतः मांस के लिए ही पाला जाता है. घरेलू उपभोग के लिए भेड़ का दूध भी निकाला जाता है. जानवरों की साल में दो बार जून और दिसंबर जनवरी में कटाई की जाती है. औसतन वार्षिक ऊन का वजन 600 ग्राम होता है. जिसमें ऑस्टिन फाइबर व्यास घनत्व क्रमशः 59 यू और 350 सेंटीमीटर दो होता है. आठवीं पशुधन जनगणना 2017 के अनुसार देश में बेल्लारी भेड़ की की संख्या 175 4507 है.