Meat: इस कारोबार को शुरू करें नहीं आएगी मंदी, सिर्फ फायदा होगा

sojat goat breed

सोजत बकरियों की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. बकरे और बकरियों का पालन केवल मीट के लिए पहले किया जाता था लेकिन बकरी के दूध की डिमांड भी अब खूब हो रही है. जबकि दूसरी ओर देश ही नहीं विदेशों में भी बकरे की मीट की डिमांड बढ़ी है. पहले एक्सपोर्ट के दौरान मीट में आने वाले केमिकल की परेशानी के चलते कंसाइनमेंट रुक जाता था, लेकिन अब इसका भी रास्ता केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान सीआईआरजी माथुर ने निकाल लिया है. संस्थान के डायरेक्टर मनीष कुमार चेटली का कहना है कि मीट कारोबार में मंदी आने की संभावना न के बराबर है. इसलिए इसे करना फायदे का सौदा है.

रिपोर्ट के मुताबिक सभी तरह के पशुओं का कुल मीट उत्पादन 37 मिलियन टन होता है. सबसे ज्यादा मीट उत्पादन यूपी, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में किया जाता है. केंद्रीय पशुपालन मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें तो कुल मीट उत्पादन में बकरे और बकरियों के मीट का उत्पादन 14 फ़ीसदी यानी 9 मिलियन टन है. हालांकि आंकड़ा साल 2020-21 का है.

दोहरी कमाई होती है
मनीष कुमार चेटली का कहना है कि इस इलाके के हिसाब से बकरे-बकरियों की नस्ले पालनी चाहिए. क्योंकि वही नस्ल अच्छी ग्रोथ करेगी, जो प्रर्यावरण में ढल सके. वहीं मीट के लिए पसंद किए जाने वाले बकरे-बकरी की जो नस्ल है, उसमें बरबरी, जमुनापारी, जखराना, ब्लैक बंगाल, सुजोत प्रमुख हैं. इन्हें पालने से दोहरी इनकम होती है. क्योंकि बराबरी जमुनापारी और जखराना नस्ल की बकरियां दूध भी खूब देती हैं.

नहीं मिला केमिकल
उन्होंने यह भी बताया कि एक्सपोर्ट के दौरान बकरे की मीट की केमिकल की जांच होती थी. कई बार ऐसा हुआ है कि मीट कंसाइनमेंट वापस आ गया. यह इसलिए होता है कि बकरों को जो चारा खिलाया जाता था, उसमें कहीं ना कहीं पेस्टीसाइड का इस्तेमाल होता था, लेकिन सीआईआरजी ने ऑर्गेनिक चारा उगाना शुरू कर दिया है. इस चारे को बकरी को खिलाया गया तो उनके मीट की जांच हुई तो केमिकल नहीं मिला.

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