नई दिल्ली. नदियों के उपर जलाशयों के पास या नदियों के आसपास ऐसे स्थल भी पाए गये है. जहां नदी के पानी की धारा बेहद कम होती है तथा उन स्थलों पर पानी की गहराई 3 से 4 फीट होती है. ऐसी जगह पर मछली पालन के लिए उपयुक्त माना जाता है. ऐसे क्षेत्र में विशेष प्रकार के अपेक्षित संसाधन या जाल, बांस, पाइप इत्यादि की मदद से घेराबन्दी करके कैप्टिविटी में मछलियां पाली जाती हैं. इस प्रकार के जल श्रोत में मछली पालन की इस योजना का नाम रिवेराईन फिश फार्मिंग (RFF) कहा जाता है.
इस योजना को लागू करने के लिए सभी पंचायतों में नये RFF मत्स्य मित्र का चयन किया गया है. नये RIF मछली मित्र के द्वारा स्थल का सर्वे एवं चयन एवं स्थानीय परिश्रमी लोगों का समूह तैयार कराया गया है.
क्य-क्या काम होगा
मत्स्य निदेशालय, डोरण्डा, रांची के मुताबिक पंचायत स्तर पर स्थानीय स्वैच्छिक परिश्रमी समूह, स्थानीय नवयुवक और मछली मित्र के माध्यम से की गई अनुशंसा के आलोक में मछली पालक प्रसार पर्यवेक्षक, मत्स्य प्रसार पदाधिकारी एवं जिला मत्स्य पदाधिकारी के द्वारा सुयोग्य स्थल का अंतिम रूप से चयन किया जा रहा है.
मछली पालन का कार्य ऐसे स्थानीय नवयुवकों के समुह द्वारा किया जायेगा, जो स्वेच्छा से श्रमदान करते हुये अपने स्तर से बॉस लगाने एवं रस्सी से जाल को बाँधने आदि का कार्य कर सकें. प्रत्येक आरएफएफ में विभाग द्वारा समुचित संख्या में मत्स्य बीज का संचयन कराया जायेगा.
प्रबंधन एवं शिकारमाही की जिम्मेवारी स्वैच्छिक परिश्रमी समुह की रहेगी। रिवराईन फिश फार्मिंग (RFF) में विभाग के द्वारा उपलब्ध कराये गये सामग्री यथा जाल आदि के रख-रखाव की पूर्ण जिम्मेवारी समूह की होगी.
नदी में बाढ़ या आपदा आने पर सुरक्षा के प्रबंध हेतु समूह यथासंभव प्रयास करेगी. जिला मत्स्य पदाधिकारी के द्वारा समूह को उपलब्ध कराये गये हैं.
सामग्री और समूह को मछली उत्पादन से हुई आय का ब्यौरा पंजीकरण में दर्ज किया जायेगा. उत्पादित मछली पर स्थानीय कार्यरत स्वैच्छिक परिश्रमी समूह का पूर्ण अधिकार होगा.
निष्कर्ष
RFF द्वारा मछली उत्पादन में बढ़ोत्तरी होगी तथा स्थानीय ग्रामीणों की आय में वृद्धि होगी. साथ ही स्थानीय ग्रामीण युवकों को स्वरोजगार के साधन उन्हीं के क्षेत्र में उपलब्ध होंगे.