नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश के मछली विभाग (Fish Department of Uttar Pradesh) के एक्सपर्ट की बताई गई बातों पर अगर गौर किया जाए तो मछली पालन में कई बातों पर ध्यान देना बेहद ही जरूरी है. मछली पालन में तालाब का पीएच लेवल जानना बेहद ही अहम है. जिसका सीधा जुड़ाव मछली के उत्पादन से है. तालाब में अगर पीएच लेवल का स्तर ठीक नहीं है तो खुद ब खुद पता चल जाता है. इसको पता लगाने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है. बस मछली की स्थिति पर गौर करना है, जिसका पता चल जाएगा.
अगर मछली मछली की गिल सतहों पर बढ़ा हुआ बलगम, असामान्य तैराकी व्यवहार पंख घिस हुआ और आंख के लेंस को नुकसान दिखाई दे तो समझ लें कि तालाब का पीएच लेवल ठीक नहीं है.
इस तरह पीएच का पता लगाएं
बता दें कि ज्यादा तापमान पर, मछली और झींगा पीएच के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं. पानी में CO₂ की सांद्रता भी पीएच को प्रभावित करती है.
CO₂ में वृद्धि से पीएच कम हो जाती है. फाइटोप्लांकटन प्रकाश संश्लेषण के लिए CO2 का उपयोग करता है, पीएच दिन के उजाले के घंटों में स्वाभाविक रूप से भिन्न होगा.
पीएच आमतौर पर सुबह के समय सबसे कम (रात के दौरान श्वसन और CO₂ उत्सर्जन के कारण) होता है और दोपहर में उच्चतम होता है.
जब CO₂ का शैवाल द्वारा उपयोग अपने उच्चतम स्तर पर होता है. मध्यम क्षारीयता के पानी अधिक बफर होते हैं और पीएच में भिन्नता कम डिग्री होती है.
नियमित रखरखाव के लिए, पीएच रीडिंग नियमित रूप से ली जानी चाहिए. मापा गया पीएच स्तर CO2 स्तर के उतार-चढ़ाव के कारण नमूना लेने के दिन के समय से प्रभावित होगा.
इसलिए पीएच को न्यूनतम स्तर के लिए सुबह से पहले और दोपहर में अधिकतम स्तर के लिए मापा जाना चाहिए.
0.5 से अधिक की अचानक गिरावट इशारा करती है कि टैंक में पानी को आंशिक रूप से बदला जाना चाहिए.
पीएच बढ़ाने के लिए लाइमिंग की जाती है और पीएच को कम करने के लिए सोडियम बाइकार्बोनेट या जिप्सम मिलाया जाता है.