नई दिल्ली. पशुपालन में डेयरी पशुओं के रिकॉर्ड रखने के लिए सभी पशुओं की पहचान करना भी जरूरी होता है. इससे पशुओं के हर दिन के प्रबंधन में भी मदद मिलती है. एक्सपर्ट की मानें तो गौशाला में बाहर से लाए गये सभी पशुओं या गौशाला में ही जन्म लेने वाले बछड़े-बछड़ियों में हर एक की एक संख्या तय की जानी चाहिए. जिसके जरिए उनकी पहचान सुनिश्चित की जा सके. नवजात बछड़े-बछड़ियों की पहचान उनके कान में टैटू बनाकर की जानी चाहिए. वहीं बड़े हो चुके पशुओं की पहचान कान में टैगिंग करके की जानी चाहिए.
पहचान के लिए पशु की स्किन पर या कान में अन्दर की ओर संख्या या शब्द को गोदवा दिया जाता है. इस गुदे हुए स्थान पर काले रंग का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा करने के लिए स्टील की सुई से अक्षर और अंक बनाये जाते हैं. एनिमल एक्सपर्ट के मुताबिक चमड़ी के नीचे टिशू बनाकर कान में रंग के घोल की कुछ मात्रा भरी जाती है. इन घोलों में न घुलने वाला कार्बन (काला) या हरा रंग होता है, जो कि टिशू में स्थिर हो जाते हैं. नवजात बछड़े बछड़ियों की पहचान के लिए टैटू बनाना सबसे उपयुक्त तरीका है. टैटू के निशान स्थायी प्रकृति वाले होते हैं. किसी वयस्क पशु को नियंत्रित करके उसके कान में टैटू का निशान बनाना मुश्किल हो जाता है.
कान टैगिंग द्वारा पशु की पहचान
वहीं कान की टैगिंग करके भी पशु की पहचान की जाती है. ये टैग्स मजबूत प्लास्टिक से बने होते हैं जिन पर संख्या दर्ज होती है. एक विशेष टैगिंग चिमटी के साथ आमतौर पर कान में टैग को लगाया जाता है. टैग्स दो प्रकार के होते हैं. एक सेल्फ पियर्सिंग किस्म और दूसरी नॉन-पियर्सिंग किस्म. पहली किस्म के टैग में नुकीले सिरे होते हैं. जिसे एक चिमटी के साथ कान में सीधा लगा दिया जाता है. जबकि दूसरे किस्म में टैग लगाने से पहले टैग पंच या चाकू की मदद से पहले एक सुराख बनाया जाना चाहिए. टैगिंग का इस्तेमाल आमतौर पर युवा बछड़े-बछड़ियों
6 माह के व्यस्क पशुओं की पहचान के लिए किया जाता है.
रिकॉर्ड का रखरखाव क्यों है जरूरी
गायों के आनुवंशिक सुधार की सफलता के लिए पशु उत्पादन का रिकॉर्ड रखना जरूरी होता है. ये रिकॉर्ड पशुओं की वैज्ञानिक आहार प्रणाली, प्रजनन तथा स्वास्थ्य देखभाल के लिए जरूरी मार्गदर्शक का काम करते हैं. इसके लिए एक कम्प्यूटर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. क्योंकि कम्प्यूटर रिकॉर्ड प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. रिकॉर्ड से पशु के उत्पादन के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है. पशु की उत्पादकता के आधार पर आहार व्यवस्था और प्रबंधन किया जा सकता है. पशुओं को उनके वास्तविक प्रदर्शन के आधार पर चुना जा सकता है. गौशालाएं सरकार के झुंड पंजीकरण और नस्ल पंजीकरण कार्यक्रमों में भाग ले सकती हैं. प्रशासन को बेहतर योजना बनाने के लिए, रिसर्च संगठनों को प्रोसेसिंग और विश्लेषण के लिए, तथा प्रसार कार्मिकों को प्रदर्शन डाटा उपलब्ध कराया जा सकता है.
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