Fish Farming: सिंघाड़ा की फसल के साथ इन प्रजातियों की मछली को पालें तो होगा दोगुना फायदा

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प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली. सिंघाड़ा एक तैरने और पानी में डूबा रहने वाला फल है. इसका ताल्लुक जलीय खाद्य अखरोट की फसल है जो गर्मी और ठंडे दोनों क्षेत्रों के तालाबों, झीलों, नदियों और उथले पानी से भरे क्षेत्रों में उगाया जाता है. ये ट्रैपा बिस्पिनोसा भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण पौधा है. सिंघाड़ा नट दो सींगों के साथ त्रिकोणीय आकार का होता है और लगभग 2 सेमी व्यास का होता है. इसे जलीय कंद भी कहते हैं. यह फसल पूरे भारत में और बड़े पैमाने पर बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, कर्नाटक और जम्मू और कश्मीर में उगाई जाती है.

यहां हम आपको सिंघाड़ा के बारे में इसलिए जानकारी दे रहें कि इसकी खेती आप मछली पालन के साथ भी कर सकते हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि ऐसा करने से सिंघाड़ा की फसल से और मछली दोनों से कमाई की जा सकती है. बताते चलें कि भारत में सिंघाड़ा की दो प्रजातियां ज्यादा बोई जाती हैं. दो सींग (कांटो) वाली प्रजाति (ट्राया वाई सिपनोसा चार सींग (कांटा) वाली प्रजाति (कवाडी सिनोसा). भारत में मुख्य रूप से खरीफ मौसम इस फसल की खेती के लिए अनुकूल माना जाता है. इसका नाम इसकी उत्पत्ति स्थान व आकार के आधार पर किया जाता है.

किस तरह की मछली पालें
फिशरीज एक्सपर्ट कहते हैं कि सिंघाड़े की खेती के साथ वायु श्वासी (Air Breathe) मछलियों (मांगुर और सिंघी) का पालन उपयुक्त माना जाता है क्योंकि इस प्रकार की मछलियां कम ऑक्सीजन वाले पानी में भी जीवन यापन कर लेती हैं. इनके शरीर में अतिरिक्त सांस लेने के अंग पाए जाते है, जिसके कारण से यह मछलियां वायुमंडलीय ऑक्सीजन का भी उपयोग कर लेती हैं. जैसे की सिंघाड़े की फसल पानी की सतह पर फैली रहती है तो तालाब के मध्य और निचली सतह पर रहने वाली मछलियां जैसे की रोहू, ग्रास कार्प, मृगल और कॉमन कार्प का भी चयन किया जाता है ताकि ये मछलियां जल में मौजूद अवांछनीय किट को ग्रहण करके नष्ट कर सकें.

प्रोटीन से भरपूर होता है सिंघाड़ा
गाौरतलब है कि हिंदी में सिघाड़ा, गुजराती में शिगोडाय, बंगाली में पनीफल, सिगडा या सिगाराय, मराठी में शिंगाडेय, संस्कृत में समागम या जलफलाय, मलयालम में करीमफोलाय, तमिल में सिमखरा, आदि के नाम से जाना जाता है. कानपुरी, जौनपुरी, देसी बड़ा, देसी छोटा, ग्रीन स्पाइनलेस ग्रीन स्पाइन, रेड स्पाइनलेस और रेड स्पाइन आदि कुछ सामान्य किस्में हैं. हरे लाल या बैंगनी जैसे विभिन्न भूसी रंग वाले सिंघाडे और लाल और हरे रंग का सम्मिश्रण भी आम हैं. सिंघाड़ा के गुण की बात की जाए तो सिंघाड़ा में 4.7 प्रतिशत प्रोटीन, 23.3 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 0.3 प्रतिशत वसा, 0.02 प्रतिशत कैल्शियम, 0.15 प्रतिशत फास्फोरस तथा 70 प्रतिशत नमी होती है.

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