Home पोल्ट्री Poultry Disease: इस बीमारी में मुर्गियों की तेजी से होने लगती है मौत, यहां पढ़ें क्या है लक्षण और इलाज
पोल्ट्री

Poultry Disease: इस बीमारी में मुर्गियों की तेजी से होने लगती है मौत, यहां पढ़ें क्या है लक्षण और इलाज

poultry farming
प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. मुर्गियों में कई तरह की बीमारियां होती हैं. उसी में से फाउल टाइफाइड भी है. फाउल टाइफाइड खासतौर से बढ़ती और वयस्क मुर्गियों का एक संक्रामक रोग है. फाउल टाइफाइड बीमारी मुर्गियों में साल्मोनेला गैलिनारम, साल्मोनेला में एक ने​गेटिव बैक्टीरिया रॉड के कारण होता है. पशुपालन और डेयरी विभाग की ज्वाइंट कमिश्ननर डॉ. अरुणा शर्मा का कहा है कि फाउल टाइफाइड को आमतौर पर मुर्गियों में फीड और पानी के जरिए सांस लेने वाले रास्ते से एंट्री करता है. मुर्गियों के शरीर में अन्य स्थानों जैसे जख्मों के जरिये भी ये बीमारी मुर्गियों में प्रवेश करके उन्हें नुकसान पहुंचाती हैं.

फाउल टाइफाइड के बारे में एक्सपर्ट का कहना है कि ये बीमारी मुर्गी पालन को बहुत नुकसान पहुंचाने वाली बीमारी है. क्योंकि इस बीमारी में मृत्युदर बहुत ज्यादा देखी जाती है. इसके चलते एक झटके में ही पोल्ट्री फार्मर्स को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है. फाउल टाइफाइड के शुरुआती लक्षणों में भूख न लगना, दस्त, डीहाइड्रेशन, कमजोरी शामिल है. इसके बाद अगर वक्त पर मुर्गियों का इलाज न हुआ तो उनकी मौत होने लगती है.

फाउल टाइफाइड में लीवर भी होता है प्रभावित
फाउल टाइफाइड वाले पक्षियों में आमतौर पर सेप्टिसीमिया के सामान्य लक्षण होते हैं और उनका लीवर अक्सर तांबे जैसा कांस्य रंग की तुलना में गहरा, बड़ा, भुरभुरा होता है. यह कांस्य मलिनकिरण केवल लिवर के हवा के संपर्क में आने के बाद ही विकसित हो सकता है. बीमारी में चिपचिपी, पित्त, चिपचिपी आंतों की सामग्री के साथ कैटरल एंटरटाइटिस आम है. बोन मौरे आमतौर पर गहरे भूरे रंग की होती है. अधिक पुराने मामलों में, मुर्गियों के शव अत्यधिक खून से सने हो सकते हैं. लंबे समय से प्रभावित पक्षियों के दिल, लीवर, आंतों और अमाशय बेहद ही प्रभावित होते हैं.

क्या है इस बीमारी का इलाज
इस बीमारी से प्रभावित पक्षियों से एस गैलिनारम को अलग करके फाउल टाइफाइड का निदान किया जा सकता है. पीसीआर टेस्ट का इस्तेमाल सीधे तिल्ली, लीवर और अंडाशय में सगैलिनरम की पहचान करने के लिए किया जा सकता है. सीरोलॉजी को झुंड परीक्षण के रूप में या नियंत्रण कार्यक्रमों में लंबे समय से संक्रमित पक्षियों की पहचान करने में मदद करने के लिए नियोजित किया जा सकता है. पोल्ट्री में इस्तेमाल किए जाने वाले सीरोलॉजिकल टेस्टों में रैपिड होल ब्लड प्लेट एग्लूटिनेशन टेस्ट, रैपिड सीरम एग्लूटिनेशन टेस्ट और एलिसा शामिल हैं.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

livestock animal news
पोल्ट्री

Egg Production: क्या आप जानते हैं मुर्गी सुबह किस वक्त देती है अंडा, पहले करती है ये काम

मुर्गियों के अंडा देने को लेकर पोल्ट्री एक्सपर्ट का कहना है कि...