नई दिल्ली. बकरी पालन एक शानदार काम है. जिसे करके आप अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं. बकरी को गरीबों की गाय कहा जाता है. क्योंकि इसे कम लागत में पाला जा सकता है. बकरी पालन के लिए ज्यादा खर्च की जरूरत भी नहीं होती है. इसे आप चाहें तो बिना शेड के ही घर पर ही पाल सकते हैं. हालांकि बड़े पैमाने पर बकरी पालन करने के लिए शेड की जरूरत पड़ती है. आप चाहें तो एक दो बकरी से भी बकरी पालन का काम शुरू कर सकते हैं. वहीं बकरी पालन से मीट और दूध बेचकर कमाई की जा सकती है.
बकरी पालन का फायदा यह है कि जब बकरी साल में एक या दो बच्चों को जन्म देती है तो इन्हें बड़ा करके भी बेचा जा सकता है और उन्हें भी कम उम्र में भी बेचा जा सकता है. इससे भी कमाई होती है. यहां हम आपको बकरी की दो नस्लों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनको पालकर आप अच्छी कमाई कर सकते हैं. आइए बकरियों की इन नस्ल के बारे में जानते हैं.
सिरोही नस्ल की बकरी
बकरी वो नस्ल राजस्थान में अरावली पर्वतमालाओं के आसपास के क्षेत्र में तथा सिरोही, अजमेर, नागौर, टोंक, राजसमंद एवं उदयपुर जिलों में मुख्य रूप से पायी जाती है. यह नस्ल आमतौर पर मांस और दूध के लिए पाली जाती है. इस नस्ल के पशु का आकार मध्यम और शरीर गठीला होता है. इसके शरीर का रंग हल्का और गहरा भूरा व शरीर पर काले, सफेद व गहरे काले रंग के धब्बे होते हैं. कुछ पशुओं में गले के नीचे अंगुली जैसी दो गूलरे (मांसल भाग) एवं मुंह के जबड़े के नीचे की तरफ दाढ़ीनुमा बाल पाये जाते हैं. कान चपटे, नीचे की तरफ लटके हुए लम्बे और पत्तीनुमा होते हैं. वहीं पूंछ छोटी एवं ऊपर की तरफ उठी हुई होती है. प्रजनन वाले नर का औसत शारीरिक भार 40-50 किलोग्राम व मादा का शारीरिक भार 23-27 किलोग्राम होता है. इनका दूध उत्पादन 71 किग्रा (115 दिनों में) होता है. इस नस्ल की बकरियां आमतौर एक बार में 2 बच्चों को जन्म देती हैं.
मारवाड़ी बकरी की क्या है खासियत
यह नस्ल राजस्थान के जोधपुर, पाली, नागौर, बीकानेर, जालौर, जैसलमेर व बाड़मेर जिले में पायी जाती है. यह मध्यम आकार की काले रंग की बकरी है. इसका शरीर लम्बे बालों से ढका होता है. कान चपटे, मध्यम आकार के व नीचे की ओर लटके होते हैं. नथुने छोटे गर्दन भारी व नर बकरों में घनी दाढ़ी पाई जाती है. नर का औसत शारीरिक भार 30-35 किलोग्राम व मादा का शारीरिक भार 25-30 किलोग्राम होता है. इनके शरीर से वर्ष में औसतन 200 ग्राम बाल प्राप्त होते हैं, जो गलीचे / नमदा आदि बनाने के काम आते हैं. इनका दुग्ध उत्पादन 92 किग्रा. (115 दिनों में) होता है. इस नस्ल में रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं सूखा सहन करने की क्षमता अन्य बकरियों की अपेक्षा अधिक होती है.
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