नई दिल्ली. पशुपालक को पशु हमेशा शांत एवं विनम्र स्वभाव के खरीदने चाहिए. ऐसा देखा गया है कि जो पशु सीधे और सयाने होते हैं, उनकी उत्पादन क्षमता बेहतर होती है. इसके विपरीत ऐसे पशु जिनमें बुरी आदतें जैसे-लात मारना, स्वयं के अथवा दूसरे के थनों को चूसना, दूसरों का शरीर, फर्श या दीवार चाटना, चारे की नांद में सींग मारना आदि लक्षण होते हैं. ऐसे पशुओं का उत्पादन ज्यादा अच्छा नहीं होता है. पशु खरीदते समय उनकी आयु का निर्धारण करना भी एक कला है. पशु विक्रेता कई बार आयु गलत बताकर भ्रम पैदा करने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार की भ्रामक परिस्थितियों से बचने के लिए पशुपालकों को पशु के दांतों का परीक्षण कर उनकी उम्र का अनुमान लगा लेना चाहिए. दांतों की संख्या और स्थिति से पशु की सही आयु का निर्धारण किया जा सकता है.
पशुपालक को सदैव उत्तम और शुद्ध नस्ल के पशु ही खरीदना चाहिए. अच्छी नस्ल के पशुओं की लागत, अवर्णित कुल के पशुओं की तुलना में अधिक होती है. वह अपनी बेहतर प्रजनन और उत्पादन क्षमता के कारण लंबे समय तक लाभदायक होते हैं. गायों में प्रमुख रूप से साहीवाल, गिर, लालसिन्धी, थारपारकर एवं भैंसों में मुर्रा, नीली रावी, सूरती और जाफराबादी-दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से उत्तम नस्लें हैं.
इसी प्रकार बैलों में नागोरी, कांकरेज, खिल्लारी, अमृतमहल, हालीकर आदि नस्लें श्रेष्ठ मानी जाती हैं. सदैव स्वस्थ एवं सुडौल शरीर वाले पशु ही खरीदना चाहिए. स्वस्थ पशु के खान-पान, चाल, सांस दर, व्यवहार आदि सामान्य होते हैं. उनकी त्वचा चमकदार, मुलायम और आंखें सतर्क व तेज होती हैं. एक स्वस्थ पशु किसी भी प्रकार की विकृति या विरूपता से मुक्त होता है. यदि एक पशुपालक अस्वस्थ पशु के लक्षणों को जानता हो तो वह बड़ी आसानी से किसी भी पशु को देखकर पता लगा सकता है कि वह स्वस्थ है या अस्वस्थ?
रोगी पशु होते हैं लक्षण
(i) रोगी पशु चारा, दाना एवं पानी बहुत कम खाता-पीता है या खाना-पीना बन्द कर देता है
(ii) रोगी पशु बहुत ही सुस्त और निष्तेज नजर आता है. झुंड में हमेशा सबसे पीछे मन्द गति से चलता है.
(iii) रोगी पशु की आंखें निष्तेज होती हैं. कभी-कभी लाल आंसुओं के साथ मवाद भी उनसे बहता रहता है.
(iv) रोगी पशु की सांस या तो बहुत तेज या बहुत धीमी चलती है.
(v) शरीर में पसलियां एवं हड्डियां दिखना, हल्की सी आवाज से पशु का चौंक जाना, शरीर के किसी अंग में सूजन या रक्तस्राव आदि भी अस्वस्थ पशु के लक्षण हैं.
(vi) रोगी पशु की त्वचा एवं बाल, सख्त एवं रूखे होते हैं.
(vii) पश के मत्र एवं मल का रंग और मात्रा का असामान्य होना भी रोगी पश के लक्षण हैं.
(vi) रोगी पशु की त्वचा एवं बाल, सख्त एवं रूखे होते हैं।
(vii) पशु के मूत्र एवं मल का रंग और मात्रा का असामान्य होना भी रोगी पशु के लक्षण हैं।
(viii) नथुनों, मुंह, योनि या गुदा से श्लेष्म या रक्तस्राव होना भी रोगजनकता का सूचक है
(ix) पशु के थनों से रक्तयुक्त दूध शाया एवं डीस पाई. निकलना या उसमें रेशे बनना भी
रोगी पशु होने का संकेत हैं.
(x) इसके अलावा पशु का लंगड़ाना, आवाज लगाने पर प्रत्युत्तर ना देना, दीवार या खम्भे पर सिर मारना या दबाकर रखना, पशु द्वारा असामान्य तरीके से घूरना आदि भी अस्वस्थता के लक्षण हैं.
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