नई दिल्ली. नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक्स रीसोर्सेज ने केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा को पुरस्कार से नवाजा है. करीब 43 साल पुराने इस संस्थान के लिए ये ऐहतिहासिक पल है. दरअसल, ये अवार्ड सीआईआरजी को बकरियों में खास जमनापारी नस्ल को बचाने और नस्ल सुधार के लिए दिया गया है. नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक्स रीसोर्सेज की ओर से मिले इस राष्ट्रीय पुरस्कार को हासिल करने के बाद इससे बहुत ही खुश नजर आए हैं. बता दें कि दूध और मीट के लिए पहचान बनाने वाली जमनापारी यूपी के बकरी इटावा में पाई जाती है, लेकिन इसे देश के अन्य हिस्सों में भी पाला जाता है.
ये पुरस्कार सीआईआरजी के डायरेक्टतर डॉ. मनीष कुमार चेटली, सीनियर साइंटिस्ट और जमनापारी बकरी परियोजना के प्रभारी डॉ. एमके सिंह को दिय गया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में एनीमल हसबेंडरी डिपार्टमेंट के डिप्टी डीजी डॉ. बीएन त्रिपाठी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय, पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एंव गौ अनुसंधान संस्थान, मथुरा के कुलपति प्रोफेसर एके श्रीवास्तव ने दोनों अधिकारियों को इस अवार्ड से नवाजा है.
गौरतलब है कि कुछ समय पहले ही केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने लैप्रोस्कोपिक तकनीक का इस्तेरमाल कर देश में पहली बार बकरी में आर्टिफिशल इंसेमीनेशन कराया था. ऐसा करने के पांच महीने बाद ही एक नर मेमने ने जन्म पाया. अब उसकी उम्र करीब 25 दिन की हो चुकी है. संस्थान ने बताया कि इस सफलता के बाद अब कम सीमेन में ज्यादा से ज्यादा बकरियों को आर्टिफिशल इंसेमीनेशन कराया जा सकेगा. इससे बकरियों की उस ब्रीड को बचाया जा सकेगा जिसकी संख्या न के बराबर रह गई है.
कैसे बचाई जा रही जमनापारी बकरी की नस्ल
गौरतलब है कि सीआईआरजी करीब 43 सालों से बकरी पर काम कर रहा है. सीआईआजी के डायरेक्टर डॉ. मनीष कुमार चेटली ने बताया कि संस्थान ने जमनापारी बकरी की नस्ल को बचाने की मुहिम की शुरुआत की थी. इसके लिए सबसे पहले तो आर्टिफिशल इंसेमीनेशन का सहारा लेकर उनकी नस्ल की संख्याा बढ़ाए जाने पर काम किया गया. ऐसा संभव हो सके, इसलिए किसानों से सीधा संवाद किया गया. उन्होंने बताया कि किसानों को 20-22 हजार रुपये कीमत का बकरा न खरीना पड़े इस लिहाज से आर्टिफिशल इंसेमीनेशन उनके लिए काफी कारगर साबित हुआ है. जबकि गुजरे 4-5 साल में 4 हजार के करीब जमनापारी नस्ल के बकरे-बकरी किसानों में बांटा गया है.
पुरस्कार मिलने के बाद बढ़ेगी मांग
डायरेक्टर डॉ. मनीष कुमार ने बताया कि इस पुरस्कार मिलने से जहां संस्थान के तमाम लोग उत्साहित हैं तो वहीं इसका फायदा ये भी है कि अब जमनापारी नस्ल पर काम करने के चलते इसकी मांग बढ़ेगी. इटावा के चकरनगर में पाई जाने वाली इस नस्ल के करीब 500 बकरे और बकरियां संस्थान में उपलब्ध हैं. जबकि दूध और मीट के लिए इन्हें पाला जाता है. लोगों में अब धीरे-धीरे जागरुकता आ रही है. उन्होंने बताया कि सीआईआजी कोलकाता में एक प्राइवेट संस्थान जमनापारी नस्ल बढ़ाने के मकसद के तहत कार्य कर रहा है. जबकि कई सरकारी संस्थान भी इस दिशा में काम कर रहे हैं.
जमनापारी बकरियों की कितनी है संख्या
केन्द्रीय पशुपालन मंत्रालय की रिपोर्ट की माने तो जमनापारी बकरियों के मामले में पहले नंबर पर यूपी है. यहां पर कुल 7.54 लाख बकरिया हैं. जबकि दूसरे स्थान पर मध्य प्रदेश है. यहां 5.66 लाख हैं. वहीं तीसरे पर बिहार है. यहां बकरियों की संख्या 3.21 लाख है. वहीं चौथे पर राजस्थान है. यहां 3.09 लाख बकरे—बकरिया हैं. वहीं पांचवें नंबर पर पश्चिम बंगाल है. यहां कुल तादाद 1.25 लाख है. आंकड़ों के मुताबिक देश में दूध देने वाली कुल बकरियों की संख्या 7.5 लाख के करीब है. साल 2019 की पशु जनगणना के मुताबिक देश में 149 मिलियन बकरे-बकरी हैं. हालाकि देश में हर साल इसमे 1.5 से दो फीसदी की बढ़ोत्तरी भी हो रही है.
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